Credit Suisse क्राइसिस का इंडियन बैंकिंग सेक्टर पर कैसा रहेगा असर? जानिए एक्सपर्ट्स का क्या कहना है
Credit Suisse Crisis का इंडियन बैंकिंग सेक्टर पर असर ना के बराबर होगा. ऐसा एक्सपर्ट्स का कहना है. भारत का मैक्रो इकोनॉमिक डेटा मजबूत है. ऐसे में यह ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस को झेलने में सक्षम है.
यूरोप और अमेरिका में बैंकिंग क्राइसिस की शुरुआत हो चुकी है. अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक फेल हो चुका है. फर्स्ट रिपब्लिक बैंक को बचाने के लिए वहां के 11 बड़े अमेरिकी बैंक सामने आए हैं. यूरोप की बात करें तो दिग्गज क्रेडिट सुईस बैंक की हालत पस्त है. जानकारों का कहना है कि क्रेडिट सुइस में आए संकट से भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि देश में इसकी उपस्थिति बहुत कम है. जेफ्रीज इंडिया की रिपोर्ट में हालांकि कहा गया है कि सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) की तुलना में क्रेडिट सुईस इंडियन फाइनेंशियल सिस्टम के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है.
विदेशी बैंकों में 12वें नंबर पर क्रेडिट सुईस
रिपोर्ट के अनुसार, स्विट्जरलैंड के बैंक की असेट्स 20000 करोड़ रुपए से कम (विदेशी बैंकों में 12वां) हैं. ये बैंक डेरिवेटिव बाजार में मौजूद है और इनकी संपत्ति का 60 फीसदी कर्ज से है, जिसमें से 96 फीसदी दो महीने तक के लिए ही है. इसकी संपत्तियों में हिस्सेदारी 0.1 फीसदी ही है, जो बैंकिंग क्षेत्र के लिहाज से काफी कम है. क्रेडिट सुइस का मुख्यालय ज्यूरिख में है और भारत में इसकी सिर्फ एक शाखा है. सूत्रों ने बताया कि इस बीच भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कुछ बैंकों के बंद होने से बदल रहे हालातों पर लगातार नजर बनाए हुए है.
भारत का मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर मजबूत
इस बैंकिंग क्राइसिस पर वेटरन बैंकर उदय कोटक ने कहा कि भारत का मैक्रो इकोनॉमिक फैक्टर मजबूत हो रहा है. ऐसे में यह ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस को झेलने के लिए बेहतर स्थिति में है. ग्लोबल अनिश्चितता के बावजूद मैक्रो फैक्टर्स मजबूत हो रहे हैं. चालू वित्त वर्ष में करेंट अकाउंट डेफिसिट 2.5 के नीचे रहने की उम्मीद है. वित्त वर्ष 2023-24 में यह 2 फीसदी के नीचे आ सकता है. कच्चे तेल में गिरावट से भी फायदा मिलेगा.
भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति बहुत कम
भारत में विदेशी बैंकों की उपस्थिति बहुत कम है. टोटल असेट में इनका शेयर केवल 6 फीसदी है. लोन में शेयर 4 फीसदी और डिपॉजिट्स में शेयर 5 फीसदी है. मुख्य रूप से विदेशी बैंक डेरिवेटिव्स में एक्टिव हैं. क्रेडिट सुईस की बात करें तो स्विस नेशनल बैंक ने 54 बिलियन डॉलर की मदद का ऐलान किया है. 2008 फाइनेंशियल क्राइसिस के बाद क्रेडिट सुईस पहला बड़ा ग्लोबल बैंक है जिसे इमरजेंसी लाइफलाइन दी जाने की तैयारी है.