वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2025-26 के लिए 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी. यह उनका लगातार आठवां और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के तीसरे कार्यकाल का दूसरा पूर्ण बजट होगा. बजट में केंद्र सरकार के सामने महंगाई और बेरोजगारी से निपटने की चुनौती होगी. साथ में सरकार किसानों और महिलाओं के लिए भी कई बड़े ऐलान कर सकती है. नौकरिपेशा वर्ग टैक्स रेट में राहत की उम्मीद कर रहा है. ये तो हो गई इस बार के बजट से जुड़ी उम्मीदें. क्या कभी आपने सोचा है कि इतिहास के पन्ने में भारतीय बजट से जुड़े पेज पर जो अनसूने राज छिपे हैं. उसमें मेंशन बैलेंस बजट का क्या मतलब है? सरकार इसे कब पेश करती है?

क्या होता है बैलेंस बजट?

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हर वित्तीय वर्ष में सरकार की प्राथमिकता बजट तैयार करना होता है. बैलेंस्ड बजट या संतुलित बजट एक ऐसा आदर्श बजट है, जिसमें सरकार की अनुमानित आमदनी और खर्च बराबर होते हैं. इसे व्यवहार में लाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन इसका महत्व आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है.

इस बजट को आप "जितनी चादर उतने पैर" की तरह देख सकते हैं. अर्थशास्त्रियों के अनुसार, ऐसा बजट ये सुनिश्चित करता है कि सरकार अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करे, जिससे आर्थिक घाटे की स्थिति उत्पन्न न हो. बैलेंस्ड बजट आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है और अनावश्यक खर्चों को रोकने में मदद करता है. इसके जरिए सरकार दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है, जो किसी भी देश के विकास के लिए जरूरी है.  

बैलेंस्ड बजट के नुकसान  

हालांकि बैलेंस्ड बजट के फायदे अनेक हैं, लेकिन इसके साथ कुछ सीमाएं भी जुड़ी हैं. आर्थिक मंदी के दौर में यह बजट कारगर साबित नहीं होता, क्योंकि इसे लागू करने से सरकार आर्थिक प्रोत्साहन देने में असमर्थ हो सकती है. बेरोजगारी जैसी समस्याओं का समाधान भी इस बजट के जरिए संभव नहीं है. विकासशील देशों में, जहां जनकल्याण योजनाओं की जरूरत अधिक होती है, बैलेंस्ड बजट इन योजनाओं को सीमित कर सकता है. इससे आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.