उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer price index-CPI) या फिर खुदरा (रिटेल) महंगाई दर दिसंबर में बढ़कर 7.35% पहुंच गई. यह साढ़े पांच साल में सबसे ज्यादा है, जबकि भारतीय रिजर्व ने सीपीआई का टारगेट 4 फीसदी रखा था. खाने-पीने के सामानों में आई तेजी के कारण महंगाई की दर में इजाफा हुआ है. 

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अगर बात डब्ल्यूपीआई (Wholesale price index) की करें तो यह भी 7 महीने के ऊपरी स्तर 2.75 फीसदी पर पहुंच गई है, जबकि नवंबर में यह महज 0.50 फीसदी थी. ऐसे में सरकार अब महंगाई को कंट्रोल करने के लिए कोई बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर रही है. 

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस महंगाई को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि, सरकार मानती है कि महंगाई में यह उछाल स्थाई नहीं है. 

सरकार महंगाई को काबू में रखने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की विकास दर पर भी काम कर रही है. बजट में मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क को लेकर कई दौर की वार्ता हो चुकी हैं. 

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली और तत्तकालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क पर काम शुरू किया था. लेकिन धरातल पर यह फ्रेमवर्क ज्यादा कारगर नहीं हो पाया था. 

 

विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि बजट 2020 में सरकार मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क को लेकर बहुत गंभीर है. साथ सरकार माइक्रो इकोनॉमी फ्रेमवर्क पर भी काम कर रही है. 

जानकार बताते हैं अभी तक महंगाई को सरकार खुदरा (रिटेल) महंगाई दर से मापती है, लेकिन सरकार चाहती है कि आरबीआई महंगाई को मॉनिटरी पॉलिसी फ्रेमवर्क के द्वारा डब्ल्यूपीआई से मापे. 

 

इसकी वजह ये है कि सरकार को ये लगता है कि बहुत सारे आकंड़े सीपीआई (retail inflation) में छूट जाते हैं. इसलिए महंगाई दर इस तेजी से बढ़ रही है. सरकार को लगता है कि अगर महंगाई मापने के पैमाने को डब्ल्यूपीआई के फ्रेम में लेकर आती है तो महंगाई का सही टारगेट सामने आ सकता है.