Banking Crisis: दो अमेरिकी बैंकों Silver Valley Bank और Signature Bank के डूबने और Credit Suisse जैसी बड़ी यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंकिंग पर लगातार निगेटिव खबरों के बीच ये चिंताएं उठ रही हैं कि क्या भारत में भी हम आने वाले दिनों में ऐसा कोई संकट देख सकते हैं? इसपर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास की टिप्पणी आई है. उन्होंने भरोसा जताया कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम काफी मजबूत है. शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि घरेलू अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र स्थिर है और महंगाई का बुरा दौर पीछे छूट चुका है. उन्होंने साथ ही जोड़ा कि महामारी से वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगे कई झटकों, यूक्रेन युद्ध और दुनिया भर में कड़ी मौद्रिक नीति के बावजूद ऐसा है.

अमेरिकी बैंकिंग संकट के बीच कितने सुरक्षित हैं हमारे बैंक?

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गवर्नर ने इस पूरे संकट को लेकर कहा कि US बैंकिंग सिस्टम ने दिखाया कि रिस्क मैनेजमेंट कितना अहम होता है. इस संकट ने दिखाया है कि असेट लाइबिलिटी मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. अब जोखिम के मूल कारणों पर ध्यान दिया जाना बहुत ही अहम है. ऐसी चीजों की निगरानी व्यवस्था होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि बैंकों से कहा गया है कि वो रिस्क मैनेजमेंट की व्यवस्था और मजबूत करें. बैंकों को जोखिम के लिए पर्याप्त बफर व्यवस्था बनाने को कहा गया है. इसके अलावा, उन्होंने आश्वासन दिया कि भारतीय बैंकों ने पर्याप्त अतिरिक्त पूंजी का इंतजाम कर रखा है. उन्होंने बैंकों का ऑफ साइट सुपरविजन सख्त किया और फ्रीक्वेंसी बढ़ाई है. बातचीत में क्रिप्टोकरेंसी पर एक बार फिर उन्होंने अपनी बात दोहराई कि क्रिप्टोकरेंसी बैंकों के लिए वास्तविक जोखिम हो सकती है. 

क्या फिर से बढ़ेंगी ब्याज दरें?

महंगाई के नीचे आने और फाइनेंशियल क्राइसिस को देखते हुए ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि आरबीआई अब ब्याज दरों यानी Repo Rate में कोई बढ़ोतरी न करें. इसपर शक्तिकांत दास ने कहा कि ये मानना कि ब्याज दरें हमेशा कम ही रहेंगी, ठीक नहीं होगा. ब्याज दरों से जुड़े जोखिम ठीक से समझना बैंकों के लिए अहम है. कई इकोनॉमिक रिसर्च में भी कहा गया है कि अगली मॉनेटरी पॉलिसी में आरबीआई ब्याज दरों में बढ़ोतरी करेगा. DBS Group Research ने इस हफ्ते जारी अपनाी रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि महंगाई कम करने की कोशिश में आरबीआई की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी फिर से रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकता है.

अभी कैसा दिख रहा है ग्लोबल ग्रोथ?

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि कुछ महीने पहले वैश्विक मंदी के बारे में अत्यधिक चिंताओं के बावजूद, वैश्विक अर्थव्यवस्था ने अधिक जुझारूपन दिखाया है. वैश्विक वृद्धि में गिरावट का रुख है. मुद्रास्फीति के कारकों में होने वाले संरचनात्मक बदलावों के बारे में भी काफी अनिश्चितता है. इनमें श्रम बाजार की गतिशीलता से लेकर बाजार की शक्ति का केंद्रीकरण और कम कुशल आपूर्ति श्रृंखला शामिल हैं उन्होंने कहा कि हालांकि भरोसा पैदा करने वाले पहलू भी हैं, जैसे वैश्विक खाद्य, ऊर्जा और अन्य जिंसों की कीमतें अपने ऊपरी स्तर से घट गई हैं. साथ ही आपूर्ति श्रृंखला सामान्य हो रही है. ऐसे में आयातित मुद्रास्फीति काबू में होनी चाहिए.

(भाषा से इनपुट के साथ)

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