Natural Farming: हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना (Prakritik Kheti Khushhal Kisan Yojana)  चलाई है. इलेक्ट्रिकल इंजीनियर रहे जगरनाथ पारिवारिक समस्या की वजह से खेती की तरफ आए. पहले से प्रचलित रासायनिक खेती करने के दौरान वह इस खेती में बढ़ रहे खर्च और थमते उत्पादन को महसूस कर रहे थे. रासायनों के सेहत पर पड़ते प्रभावों को देखकर उन्होंने खाद और कीटनाशकों के प्रयोग को त्यागने का मन बनाया. उनकी रासायनमुक्त खेती प्रणाली की तलाश सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती पर आकर खत्म हुई.

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उन्हें आत्मा परियोजना बिलासपुर के अधिकारियों के माध्यम से प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के बारे में पता चला जिसके बाद उन्होंने पालमपुर विश्वविद्यालय में पद्मश्री सुभाष पालेकर से इस खेती की ट्रेनिंग ली. घर पहुंचते ही उन्होंने प्राकृतिक खेती विधि से खेती करना शुरू कर दिया. खेतों से एक फसल लेने के बाद उन्होंने अपने 1000 वर्ग मीटर के पॉलीहाउस में भी प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से सब्जियां उगाना शुरू किया, जहां वह खीरा, बीन्स और अन्य मौसमी सब्जियां उगा रहे हैं.

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प्राकृतिक खेती ने उबारा 20 वर्षों का उतार-चढ़ाव

कई गांव वाले तो उन्हें अभी भी रासायनों का इस्तेमाल करने के लिए कहते हैं. लेकिन प्राकृतिक खेती से मिले नतीजों से जगरनाथ बेहद संतुष्ट हैं. रबी सीजन में उन्हें गेहूं की अच्छी पैदावार मिली. सह-फसल के तौर पर मटर और सरसों से भी अतिरिक्त कमाई हुई. इसके अलावा अपने पॉलीहाउस से वह हर रोज 50 किलोग्राम खीरा बेच रहे हैं. जगरनाथ के इलाके में बंदर बहुत हैं जिस कारण किसानों के बीच फसल सुरक्षा चिंता का विषय है. लेकिन उन्होंने इस समस्या का हल भी खोजा है. खरीफ सीजन में मक्की की फसल सुरक्षा के लिए उन्होंने खेत के कोनों पर भिंडी लगाई है, जिससे बंदरों की खेतों आवक कम हुई. आस-पास के अन्य किसान भी उनके इस नुस्खे को अपना रहे हैं.

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हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग की तरफ से जगरनाथ को संसाधन भंडार बनाने के लिए सहायता भी दी गई है. इस संसाधन भंडार से वह नए प्राकृतिक खेती किसानों को गोबर और गोमूत्र देते हैं. साथ ही नए किसानों को आने वाली समस्याओं के हल भी वह फोन के जरिए देते हैं. जगरनाथ एक बगीचा भी लगाए हैं जिसमें वह 400 फलदार पौधे लगाए हैं.

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