Success Story: किसान की मेहनत लाई रंग, पथरीली जमीन से कमा रहा करोड़ों का मुनाफा, जानिए कैसे
Success Story: ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग और उन्नत बीज जैसी तकनीकों का उपयोग कर किसान अब कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं.
Success Story: आज के दौर में पारंपरिक खेती में किसानों को कम आय और ज्यादा मेहनत का सामना करना पड़ता है. ऐसे किसानों को आत्मा परियोजना के जरिए आधुनिक तकनीक, इनोवेशन और वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग और उन्नत बीज जैसी तकनीकों का उपयोग कर किसान अब कम लागत में अधिक मुनाफा कमा रहे हैं.
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के किसान कैलाश पवार इस बात का जीता-जागता उदाहरण है. सरकारी मदद और तकनीकी मार्गदर्शन से उन्होंने अपनी पथरीली जमीन को न सिर्फ उपजाऊ बनाया बल्कि करोड़ों का मुनाफा भी कमाया. बदलाव की शुरुआत कैलाश पवार जो पहले अपनी 16.99 हेक्टेयर जमीन पर पारंपरिक फसलें उगाते थे, कम उत्पादन और बढ़ती लागत से जूझ रहे थे. मध्य प्रदेश कृषि विभाग के अधिकारियों से आत्मा परियोजना के तहत प्रशिक्षण के दौरान उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिला. अधिकारियों ने उन्हें इनोवेशन और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करे खेती करने की सलाह दी.
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70 दिनों के भीतर फसल तैयार
कैलाश ने अपनी जमीन के 5-6 एकड़ पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की. उन्होंने लगभग 1,30,000 पौधे लगाए, जिनकी फसल 70 दिनों के भीतर तैयार हो गई. स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई मार्च के अंत तक चलती है और इसकी सप्लाई जबलपुर, नागपुर, इंदौर और भोपाल जैसे बड़े शहरों में की जाती है. पहले पथरीली जमीन के कारण उनका टर्नओवर 80 लाख रुपये था जिसमें नेट मुनाफा 30 लाख रुपये होता था. लेकिन अब स्ट्रॉबेरी और सब्जियों के उत्पादन से उनका टर्नओवर 2 से 2.5 करोड़ रुपये तक पहुंच गया और नेट मुनाफा के रूप में उन्हें 1 करोड़ रुपये मिल रहे हैं. कैलाश पवार कहते हैं कि सरकार की योजनाओं और कृषि विभाग के मार्गदर्शन से हमें न सिर्फ खेती के जोखिम कम करने में मदद मिली बल्कि अपनी कमाई को कई गुना बढ़ाने का अवसर भी मिला.
तकनीकी की सहायता
किसान कैलाश ने ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग तकनीक का उपयोग करते हुए स्ट्रॉबेरी, लहसुन, टमाटर, शिमला मिर्च और बैंगन जैसी फसलों की खेती शुरू की. कृषि विभाग के अधिकारी समय-समय पर उनके खेत का निरीक्षण करते हैं और उन्हें हर कदम पर मार्गदर्शन प्रदान किया. इस तकनीकी सहायता ने उनकी खेती को जोखिम मुक्त और फायदेमंद बना दिया.
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