Success Story: फौजी बना किसान, रिटायरमेंट के बाद शुरू की खेती, डेढ़ लाख लगाकर कमा लिया ₹10 लाख का मुनाफा
Success Story: सेना में अपनी सेवाएं देने के बाद राजेश यादव जब रिटायर हुए तो दूसरी नौकरी करने के बजाए खेती को अपना पेशा चुना. अब वो खेती से लाखों रुपए कमा रहे हैं. उनसे दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं.
Success Story: आपने रिटायरमेंट के बाद किसी फौजी को दूसरी नौकरी करते हुए देखा होगा. लेकिन कुछ फौजी ऐसे भी होते हैं, जो रिटायरमेंट के बाद ऐसा काम कर जाते हैं जो मिसाल बन जाती है. सेना में अपनी सेवाएं देने के बाद राजेश यादव जब रिटायर हुए तो दूसरी नौकरी करने के बजाए खेती को अपना पेशा चुना. उन्होंने अपने गांव में खेती की योजना बनाई और इसमें सफलता भी हासिल की. अब वो खेती से लाखों रुपए कमा रहे हैं. उनसे दूसरे किसान भी प्रेरित हो रहे हैं.
बिहार कृषि विभाग के मुताबिक, राजेश यादव ने खेती शुरू करने से पहले कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित वर्कशॉप से काफी कुछ सीखा. उसके बाद जिला उद्यान विभाग के सहयोग से बीज लेकर खेती में उतरे. उन्होंने धान, गेहूं की पारंपरिक खेती को छोड़कर रेड लेडी पपीता (Papaya Farming) के पौधे खेतों में लगाए. 10 महीने में ही उनकी मेहनत रंग लाने लगी. उन्हें उनके फसल की अच्छी कीमत मिल रही है.
धान-गेहूं नहीं कर सकता इसकी बराबरी
उनका मानना है कि पपीता की खेती एक एकड़ में करते हैं और बाकी में धान-गेहूं 10 एकड़ में करते हैं तो भी इसकी बराबरी दूसरी खेती नहीं कर सकती है. इसकी मार्केटिंग में व्यापारी किसान को ढूंढता है जबकि दूसरी फसल में किसान को व्यापारी ढूंढना पड़ता है.
1.5 लाख रुपये लगाकर ₹10 लाख कमाए
राजेश ने शुरुआत से 5 कट्ठा खेती से की. जिसमें उन्हें शानदार मुनाफा हुआ. इसके बाद उत्साह ऐसा बढ़ा कि उन्होंने इसकी खेती एक एकड़ में शुरू किया. पपीते की ये उन्नत किस्म उनके खेतों में लहलहा रही है. वो 1.5 लाख रुपये की पूंजी लगाकर 10 लाख रुपये कमा चुके हैं. उनकी ये खेती अन्य किसानों के लिए प्रेरणा बन गई है. उनसे प्रेरणा लेकर आस-पास के 20 से अधिक किसानों ने अपने खेतों में पपीते के पौधे लगाए हैं.
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पपीते की खेती पर मिलती है 75% सब्सिडी
पपीते की खेती में बिहार सरकार किसानों को आर्थिक मदद देती है. किसानों को इसकी लागत 60,000 रुपये पर 75% अनुदान के रूप में दिया जाता है. दो वर्षों में इसमें सब्सिडी रहती है. पहले साल किसान को 75 फीसदी और दूसरे साल 25 फीसदी सहायता अनुदान दी जाती है. राजेश न सिर्फ अच्छी कमाई कर रहे हैं बल्कि नई तकनीक वाली खेती में करीब 20 लोगों को रोजगार भी दे रखा है.