कभी खेतों में बीमारियों और बढ़ते खर्च से तंग आकर छोड़ना चाहते थे खेती, अब प्राकृतिक खेती से हर साल कमा रहा लाखों
Natural Farming: पिछले एक दशक से खेती कर रहे किसान विजय कुमार खेती में बढ़ रही बीमारियों और बढ़ते केमिकल के खर्चे से तंग आ चुके थे और खेती छोड़ने का मन बना चुके थे. लेकिन प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग लेना के बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई.
Natural Farming: प्राकृतिक खेती समय की मांग है. सरकार प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) करने के लिए अगले 3 साल तक एक करोड़ किसानों की मदद करेगी. इसके लिए 10,000 बायो इनपुट रिसोर्स सेंटर खोले जाएंगे. पिछले एक दशक से खेती कर रहे किसान विजय कुमार खेती में बढ़ रही बीमारियों और बढ़ते केमिकल के खर्चे से तंग आ चुके थे और खेती छोड़ने का मन बना चुके थे. लेकिन उनको प्राकृतिक खेती (Natura Farming) के बारे में पता चला और इसके बाद उन्होंने इस विधि के जनक सुभाष पालेकर से ट्रेनिंग ली. ट्रेनिंग पान के बाद विजय ने प्राकृतिक खेती विधि से प्रयोग के तौर पर अपने बंजर पड़े जमीन के खेत से शुरू किया और आज उनका खेत न सिर्फ गांव के किसानों बल्कि कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए प्रयोगशाला बन गया है.
प्राकृतिक खेती के फायदे
प्राकृतिक खेती में जमीन के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखा जाता है. इसमें प्रकृति में बहुत आसानी से मिलने वाले जीवाणुओं और तत्वों का इस्तेमाल कर खेती की जाती है. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता है. साथ ही प्राकृतिक खेती में किसानों की लागत भी कम आती है.
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विजय ने आधे बीघे से हुई प्राकृतिक खेती की शुरुआत अब 10 बीघा तक पहुंच गई और उनके क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए प्राकृतिक खेती के ट्रेनर बनकर उभरे हैं. हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, उन्होंने मिश्रित खेती के तहत गेहूं और सह-फसल के तौर पर सरसों और मटर लगाए, जिसके अच्छे नतीजे मिले. वे कहते हैं कि गेहूं में पीला रतुआ का प्रकोप आया तो इस पर खट्टी लस्स और जीवामृत के बहुत अच्छे नतीजे देखने को मिले. जिसे देखकर अन्य किसान भी भौंचक्के रह गए.
लाखों में हो रही कमाई
प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) अपनाने के बाद से विजय की कमाई बढ़ गई है, क्योंकि इस विधि में खेती की लागत कम हो जाती है, जिससे मुनाफा बढ़ जाता है. विजय अपने खेतों में गेहूं, मटर, सरसों, मक्की, माश, सोयाबीन, गोभी, लौकी, ब्रोकली, आलू, कद्दू और खीरा लगाते हैं.
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