Natural Farming: प्राकृतिक खेती समय की जरूरत है. प्राकृतिक खेती (Prakritik Kheti) को जोर-शोर से बढ़ावा द‍िया जा रहा है.  देश के कई इलाकों में क‍िसान अब पूरी तरह से प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपना रहे हैं. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के रहने वाले बलवंत सिंह ने प्राकृतिक खेती से मोटी कमाई कर रहे हैं. साथ ही जंगल मॉडल तैयार कर साथी किसानों को प्रेरित भी कर रहे हैं.

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उनके जिले का परागपुर वैसे तो गेहूं, अदरक, मक्की की खेती के मशहूर है लेकिन अब यहां के किसान फलों की खेती को भी प्रमुखता दे रहे हैं. मौजूदा समय की चुनौतियों और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए इस क्षेत्र के किसान प्राकृतिक खेती की ओर रूख कर रहे हैं. भ्रांता गांव के बलवंत सिंह भी ऐसे ही किसान हैं जिन्होंने देश सेवा के बाद खेती करने की ठानी और इसके लिए प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को अपनाया. 

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6 दिनों की ट्रेनिंग ले शुरू की प्राकृतिक खेती

बलवंत सिंह के मुताबिक, पालमपुर में सुभाष पालेकर जी से 6 दिन की ट्रेनिंग लेने के बाद प्राकृतिक खेती की शुरुआत की. घर पर देसी गाय नहीं थी इसलिए वह दूसरे गांव से जाकर देसी गाय का गोबर और गोमूत्र इकट्ठा करके लाए और अलग-अगल खेती आदान बनाने लगे. जब वह इनका इस्तेमाल खेती में करने लगे तो साथ किसानों ने उन्हें हतोत्साहित किया, लेकिन जैसे-जैसे लोगों ने इस खेती के नतीजे देखे तो उनका नजरिया बदलने लगा.

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हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, प्राकृतिक खेती में उत्कृष्ठता के लिए बलवंत सिंह को अवॉर्ड से सम्मानित किया है. इससे उत्साहित होकर वो अपनी पंचायत की महिला किसानों के समूह को केमिकल मुक्त फसलें उगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इन किसानों को गाय का गोबर, गोमूत्र व आदान देने के साथ वह समय-समय पर प्राकृतिक खेती से संबंधित जरूरी जानकारियां देकर इनके खेतों पर भी जाते हैं.

कम खर्च में मोटी कमाई

उनका कहना है कि मैं किसानों को खेती के साथ बागवानी के लिए भी प्रेरित कर रहा हूं. किसान मेरे मॉडल को देखकर इसे अपना रहे हैं. वो गेहूं, अदरक, मक्की, मटर, चना, लहसुन, गोभी, सेब, चीकू और आडू की खेती करते हैं. उनके मुताबिक, पहले रासायनिक खेती में 40,000 रुपये के खर्च में 1.50 लाख रुपये की कमाई होती थी. प्राकृतिक खेती को अपनाने के बाद खर्च घटकर 6,000 रुपये हो गया और आय 1.75 लाख रुपये हो गई.

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