Edible Oil: होली से पहले खाने के तेल के कारोबार में क्या रहा रुख? सस्ता हुआ या महंगा, जानिए यहां
Edible Oil: तेल तिलहन कारोबार में देखा जाता है कि जब तेल कीमतें कम होती हैं तो खल महंगा होता है और खाद्यतेल कीमत सस्ता होने पर कारोबारी अपने इस नुकसान की भरपाई, तेलखल को महंगा बेचकर पूरा करते हैं.
Edible Oil: बीते हफ्ते दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में कारोबार का मिला-जुला रुख देखने को मिला और सरसों तेल (दादरी) में मामूली सुधार के अलावा सोयाबीन तेल, मूंगफली तेल-तिलहन, कच्चा पाम (CPO) और पामोलीन तेल कीमतों में मजबूती आई. दूसरी ओर, सरसों तिलहन और सरसों पक्की-कच्ची घानी तेल और बिनौला तेल कीमतों में गिरावट दर्ज हुई.
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि समीक्षाधीन सप्ताह में मंडियों में सरसों तेल खली (mustard oil cake) की मांग कमजोर होने से सरसों दादरी तेल कीमत में मामूली सुधार हुआ. तेल तिलहन कारोबार में देखा जाता है कि जब तेल कीमतें कम होती हैं तो खल महंगा होता है और खाद्यतेल कीमत सस्ता होने पर कारोबारी अपने इस नुकसान की भरपाई, तेलखल को महंगा बेचकर पूरा करते हैं.
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मंडियों में सरसों की आवक बढ़ी
सूत्रों ने कहा कि मंडियों में सरसों की आवक धीरे-धीरे बढ़ना शुरू हो गयी है लेकिन सस्ते आयातित तेलों की भरमार के बीच यह खप नहीं रहा है क्योंकि सरसों की लागत अधिक बैठती है. जनवरी में सूरजमुखी और सोयाबीन रिफाइंड का आयात लगभग 4 ख 62 हजार टन का हुआ है उसके बाद फरवरी में भी पर्याप्त आयात हुआ है.
हल्के तेलों का इतनी अधिक मात्रा में आयात हो रखा है कि देश में अगले 4-5 महीने हल्के के तेल की पर्याप्त उपलब्धता बनी रहेगी और सरकार ने इन खाद्य तेलों पर इम्पोर्ट ड्यूटी का प्रतिबंध नहीं लगाया तो इस बात का असर देशी तेल तिलहनों के न खपने के रूप में देखने को मिल सकता है.
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सस्ते आयातित तेलों के आगे मूंगफली तेल तिलहन पर बहुत असर नहीं है क्योंकि इसके सूखे मेवे की तरह हल्की मांग होने के साथ इसके डीओसी की निर्यात मांग भी है. सबसे सस्ता होने की वजह से वैश्विक मांग होने के कारण कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल कीमतों में सुधार आया.
सूरजमुखी की खेती का घट सकता है रकबा
सूत्रों ने कहा कि देश में आयातित सूरजमुखी तेल के सस्ता होने का असर इसके अगली बिजाई पर हो सकता है और इसकी खेती का रकबा घट सकता है. कई स्थानों पर तो सूरजमुखी बीज न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे दाम पर बेचे जा रहे हैं. यही खतरा सरसों की बंपर पैदावार के ऊपर भी है. फिलहाल इसे तत्काल नियंत्रित करने की जरूरत है नहीं तो देशी तेल तिलहनों का खपना मुश्किल होगा.
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सूत्रों ने कहा कि देश के तेल तिलहन कारोबार पर जो आयातित तेल सबसे अधिक असर डालते हैं उनमें सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे ‘सॉफ्ट आयल’ प्रमुख हैं. इन तेलों की खपत अधिक आयवर्ग के लोगों में कहीं ज्यादा है. पाम और पामोलीन ज्यादातर कम आयवर्ग के लोग खपत करते हैं और इनकी घट बढ़, देशी नरम तेलों पर कम असर डालते हैं. बीते हफ्ते सरकार ने सूरजमुखी के ड्यूटी फ्री इम्पोर्ट की छूट को 1 अप्रैल से समाप्त कर दिया है और अब देशी तेल तिलहनों के बाजार में खपाने की स्थिति बनाने के लिए सूरजमुखी और सोयाबीन पर इम्पोर्ट ड्यूटी अधिकतम सीमा तक बढ़ाना ही एक रास्ता दिख रहा है.
देशी तेल तिलहनों का खपना जरूरी
सूत्रों ने कहा कि खाद्य तेल महंगा होने पर पाम पामोलीन के आयात से काम चलाया जा सकता है पर करोड़ों की संख्या में देश के दुधारू मवेशियों के लिए हमें खल और मुर्गीदाने के लिए डीओसी, देशी तिलहनों से आसानी से सुलभ होते हैं और इसलिए देशी तेल तिलहनों का खपना जरूरी है.
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खल महंगा होने से दूध के बढ़े दाम
खल महंगा होने से हाल के महीनों में देश में कई बार दूध के दामों में बढ़ोतरी देखने को मिली है और आबादी के बड़े हिस्से में खाद्य तेल के मुकाबले दूध की खपत कई गुना ज्यादा है. दूध एवं इसके उत्पादों के महंगा होने से मुद्रास्फीति पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है.
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