Lakh Ki Kheti: किसानों की आमदनी दोगुना करने के लिए पारंपरिक फसलों के साथ-साथ बागवानी फसलों की खेती पर जोर दिया जा रहा है. कई राज्यों ने किसानों को विशेष बागवानी फसलों पर फोकस करने के लिए प्रोत्साहित किया है. बागवानी फसलों की खेती के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही है, जिससे किसानों को कम खर्च में अच्छा मुनाफा मिल सके. 

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इसी कड़ी में बिहार सरकार भी आगे आई है. राज्य में लाह की खेती (lac cultivation) को काफी बढ़ावा दिया जाएगा. लाह की खेती के लिए अब बांका की पहचान बनेगी. बिहार सरकार कृषि विभाग के मुताबिक, बांका जिले के जंगली क्षेत्र में लाह यानी लाख की खेती शुरू की गई है. इससे जिले के आदिवासी किसानो की तकदीन में एक नई चमक आएगी. यहां 50 पलाश के पेड़ पर लाह की खेती शुरू की गई है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के निर्देश पर कृषि विज्ञान केंद्र की देख रेख में यह खेती की जा रही है. आने वाले समय में बांका लाह उत्पादन का हब बनेगा.

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पेड़ पर कब डाले जाते हैं लाह के कीड़े

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पलाश के पेड़ पर लाह की खेती फायदेमंद होती है. लाह के कीड़े को पलाश के पेड़ पर जून या जुलाई में डाला जाता है और दिसंबर से जनवरी में कटाई की जाती है. 6 से 8 महीने में यह मार्केट में बेचने लायक हो जाता है.

किसानों के लिए बेहतर आय का जरिया 

कच्चे लाह की बिक्री भी की जाती है. इसे लोग बीज के रूप में 150 रुपये किलो खरीदते हैं. जबकि लाह को लोग 600 से 800 रुपये किलो बेच सकते हैं. आने वाले में समय में यह किसानों के लिए बेहतर आय का जरिया बनेगा.

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इन इंडस्ट्री में लाह की डिमांड

लाह के कीड़े पौधों की पत्तियों को खाकर अपशिष्ट निकालते हैं, जिसे लाह कहा जाता है. इसका उसका उपयोग पेंट, इंक, कॉस्मेटिक, इलेक्ट्रिक, मोबाइल, रेलवे, पोस्टल विभाग, लकड़ी का फर्नीचर, फूड इंडस्ट्रीज आदि में किया जाता है. आपको बता दें कि लाह उत्पादन (lac cultivation) में भारत विश्व में नंबर एक देश है. भारत में करीब 80% लाह का उत्पादन होता है. यहां के पांच राज्यों झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व पश्चिम बंगाल में लाह की खेती होती है. अब बिहार में भी इसकी शुरुआत की गई है.