गेहूं की इस खास किस्म से बनता है पिज्जा, नूडल, सिर्फ 3 बार पानी में 50-60 क्विंटल तक उत्पादन, खेती बनाएगी मालामाल
Kathia Wheat Cultivation: देश में कठिया गेहूं की खेती लगभग 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. भारत में इसकी खेती बहुत पुरानी है.
Kathia Wheat Cultivation: रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बुवाई शुरू हो गई है. ऐसे में किसानों को गेहूं की ऐसी किस्म का चयन करना चाहिए जो कम लागत में ज्यादा मुनाफा दे सके. ऐसी ही एक लोकप्रिय किस्म है- कठिया गेहूं (Kathia Wheat). देश में कठिया गेहूं की खेती लगभग 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है. भारत में इसकी खेती बहुत पुरानी है. कठिया गेहूं (Kathia Wheat Cultivation) इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए अच्छा माना जाता है. इससे बनने वाले सिमोलिना (सूजी/रवा) से फास्टफूड जैसे पिज्जा, सेवेइयां, नूडल, वर्मीसेली आदि बनाये जाते हैं. इसमें रोग अवरोधी क्षमता अधिक होने के कारण इसके निर्यात की अधिक संभावना रहती है.
कठिया गेहूं की खेती के फायदे
कठिया गेहूं की किस्में में सूखा प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है. इसलिए 3 सिंचाई ही पर्याप्त होती है जिससे 45-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार हो जाती है. सिंचित दशा में कठिया प्रजातियों औसतन 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार और असिंचित व कम सिंचित दशा में इसका उत्पादन औसतन 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जरूर होता है.
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कठिया गेहूं (Kathia Wheat) में शरबती (एस्टिवम) की अपेक्षा प्रोटीन 1.5-2% अधिक विटामिन-A की अधिकता बीटा कैरोटीन एवं ग्लूटीन पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है. कठिया गेहूं में गेरूई या रतुआ जैसी महामारी का प्रकोप तापक्रम की अनुकूलतानुसार कम या अधिक होता है. नवीन प्रजातियों का उगाकर इनका प्रकोप कम किया जा सकता है.
बुवाई और सिंचाई
असिंचित दशा में कठिया गेहूं (Kathia Wheat) की बुआई अक्टूबर माह के अंतिम हफ्ते से नवंबर से पहले हफ्ते तक जरूरी कर देनी चाहिए. सिंचित अवस्था में नवम्बर का दूसरे और तीसरे हफ्ते बेहतर समय होता है. पहली सिंचाई बुआई के 25-30 दिन पर, दूसरी सिंचाई बुआई के 60-70 दिन पर और तीसरी सिंचाई बुआई के 90-100 दिन पर करनी चाहिए. सामान्य गेहूं की भांति खरपतवार नाशी व रोग अवरोधी केमिकल का इस्तेमाल करना चाहिए. कठिया गेहूं के झड़ने की संभावना रहती है. इसलिए पक जाने पर जल्द कटाई और मड़ाई कर लेना चाहिए.
संतुलित उर्वरक और खाद का उपयोग दानों के बेहतर गुण और अच्छी उपज पाने के लिए बहुत जरूरी है. इसलिए 120 किग्रा नाइट्रोजन (आधी मात्रा जुताई के साथ) 60 किलो, फास्फोरस 30 किलो, पोटाश प्रति हेक्टेयर सिंचित दशा में पर्याप्त है. इसमें नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद टापड्रेसिंग के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए. असिंचित दशा में 60:30:15 और कम असिंचित में 80:40:20 के अनुपात में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिए.
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कठिया गेहूं की सफल खेती
- भरपूर उपज के लिए समय पर बुवाई करना जरूरी है.
- असिंचित और कम सिंचित दशा में बुवाई समय खेत में नमी का होना बहुत जरूरी है.
- कठिया गेहूं की उन्नतिशील प्रजातियों का ही चयन करके बोना चाहिए.
- चमकदार दानों के लिए पकने के समय आर्द्रता की कमी होनी चाहिए.
- रोग और कीट नाशकों का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए जिससे दाने की गुणवत्ता पर असर न आए.