Edible Oil Prices: बीते हफ्ते मूंगफली तेल में सुधार, सरसों-सोयाबीन का जानिए क्या रहा भाव
Edible Oil Price: मूंगफली तिलहन के नुकसान की भरपाई करने के लिए तेल के भाव ऊंचे बोले जा रहे हैं, इसलिए तेल के दाम में मजबूती है, पर लिवाली कमजोर बनी हुई है.
Edible Oil Price: बीते हफ्ते देश के तेल-तिलहन बाजारों में मूंगफली तेल कीमत में आये सुधार को छोड़कर बाकी सभी सरसों, सोयाबीन तेल-तिलहन, मूंगफली तिलहन, कच्चा पामतेल, पामोलीन दिल्ली एवं एक्स-कांडला तथा बिनौला तेल के दाम गिरावट के साथ बंद हुए. बाजार सूत्रों ने कहा कि दाम ऊंचे होने की वजह से बाजार में मूंगफली तेल की लिवाली कम है इसके चलते मूंगफली दाने (तिलहन) की खरीद भी कम है. वैसे तो लिवाली सभी खाद्य तेलों की कमजोर है. लेकिन मूंगफली की पेराई में भी मिल वालों को 5-7 रुपये किलो का नुकसान है. पेराई के बद इस तेल के लिवाल कम हैं. उन्होंने कहा कि मूंगफली तिलहन के नुकसान की भरपाई करने के लिए तेल के भाव ऊंचे बोले जा रहे हैं, इसलिए तेल के दाम में मजबूती है, पर लिवाली कमजोर बनी हुई है.
सूत्रों ने कहा कि यही हाल सरसों (Mustard) का है जिसमें पिछले सप्ताहांत के मुकाबले समीक्षाधीन सप्ताहांत में गिरावट आई है. किसानों, व्यापारियों, सहकारी संस्थाओं के पास पिछले साल का भी काफी स्टॉक बचा हुआ है. अगले 10-15 दिन में कुछ राज्यों में सरसों की नई फसल भी आने वाली है. सस्ते आयातित तेल का बाजार पर कब्जा बना रहा, तो इस बार सरसों किसानों की और भी बुरी हालत होगी क्योंकि सस्ते आयातित तेलों के आगे सरसों कहीं खपेगा नहीं.
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उन्होंने कहा कि बढ़े हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के हिसाब से देश में सरसों तेल का भाव पेराई के बाद 125 रुपये किलो बैठता है और देशी सूरजमुखी तेल का दाम 150-160 रुपये किलो बैठता है. जबकि कांडला बंदरगाह पर आयातित सूरजमुखी तेल का दाम 80 रुपये किलो है. इसी प्रकार कांडला में आयातित सोयाबीन डीगम तेल का दाम 82.50 रुपये किलो है. तो फिर ऐसे हालात में देशी सूरजमुखी और सरसों की खरीद कैसे होगी?
सूत्रों ने कहा कि लगभग 3-4 साल पहले सूरजमुखी तेल का दाम जब 1,100 डॉलर प्रति टन हुआ करता था तब उसपर 38.50 प्रतिशत आयात शुल्क लागू था. बाद में जब इस तेल का दाम 2,500 डॉलर प्रति टन की ऊंचाई पर जा पहुंचा, तो उस वक्त इसपर 5.5% का आयात शुल्क और शुल्कमुक्त आयात होने की व्यवस्था थी. मौजूदा समय में जब इस तेल का दाम 900 डॉलर प्रति टन रह गया है तब भी आयात शुल्क 5.5% ही है. इन बातों पर कौन गौर करेगा? जाहिर है, तेल संगठन को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
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जिस तरह चीनी मिलों के संगठन अपने उद्योग की समस्या को सरकार के सामने रखकर अपनी अपनी मांग मनवा लेते हैं, वहीं तेल संगठनों का रवैया इसके उलट दिखता है. तेल उद्योग के सामने आसन्न दिक्कतों को उन्हें स्पष्ट रूप से सरकार को बताना चाहिये. यह भी बताना चाहिये कि बंदरगाह पर जिस सूरजमुखी तेल का थोक दाम 80 रुपये किलो है, वह उपभोक्ताओं को ऊंचे दाम (लगभग 125-130 रुपये 910 ग्राम यानी लीटर) में क्यों खरीदना पड़ रहा है? उन्होंने कहा कि क्या तेल संगठनों की जिम्मेदारी खाद्य तेलों के आयात निर्यात के आंकड़े देने, पाम पामोलीन के बीच शुल्क अंतर बढ़ाने की मांग रखने तक सीमित होनी चाहिए?