Natural Farming: जो लोग कहते हैं कि खेती-किसानी में कुछ नहीं रखा है. उन्हें हिमाचल प्रदेश के रहने वाले मोहन सिंह से सीखना चाहिए. पढ़े लिखे और प्रोफेशनल युवा कृषि (Agriculture) के क्षेत्र में आगे आ रहे हैं और इसे ही अपने आजीविका का जरिया बना रहे हैं. विदेश में नौकरी की चाह रखने वाले युवाओं के लिए किसान मोहन सिंह ने गांव में ही खेती का उत्कृष्ट मॉडल खड़ा कर रोजगार की राह प्रदान की है. वो विदेश की नौकरी छोड़कर पहाड़ों के बीच में आकर खेती कर रहे हैं. खेती करके मोहन 8 लाख रुपए से ज्यादा सालाना की कमाई कर रहे हैं. 

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हिमाचल प्रदेश के चरूड़ी पंचायत के गटोत गांव के करने वाले किसान मोहन सिंह कतर और सऊदी अरबर में नौकरी करते थे, लेकिन परिवार से दूर होने की वजह से उन्होंने वहां नौकरी छोड़ दी और घर वापसी कर खेती शुरू की. मोहन मौसमी फल और सब्जी की खेती करते हैं.

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प्राकृतिक खेती से बढ़ा मुनाफा

प्राकृतिक खेती से फसलों की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ी है. रसायनिक खेती में जिन रोगों की रोकथाम नहीं हो पाती थी, वह प्राकृतिक खेती से हो रही है. विदेश से गांव लौटने के बाद मोहन सिंह ने पहले रसायनिक खेती शुरू की थी जिसमें उन्हें उपज तो अच्छी मिली लेकिन खर्चा भी अधिक हो रहा था. इसके बाद मोहन वर्ष 2018 में प्राकृतिक खेती से जुड़े और आज वे खेती में अपनी कृषि लागत को तीन गुना कम कर 8 लाख रुपए से ज्यादा सालाना कमाई कर रहे हैं. 

इस इलाके में ज्यादातर लोन पानी की समस्या से जूझने के कारण मौसमी फसल उगाने में ही रुचि रखते हैं. लेकिन विकट परिस्थितियों में भी मोहन सिंह ने प्राकृतिक खेती को अपनाकर न सिर्फ अपनी कृषि लागत को कम किया बल्कि पैदावार में भी बढ़ोतरी कर अपने मुनाफे को कई गुना बढ़ाकर अन्य किसानों के सामने उदाहरण पेश किया है.

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50 हजार लगाकर कमा लिए 8 लाख

मोहन सिंह के पास कुल जमीन 84 करनाल यानी 42 बीघा है. इसमें से 40 करनाल जमीन में वो प्राकृतिक खेती करते हैं. इसमें वे खीरा, फ्रासबीन, गोभी, मटर, मूली, शलगम, धनिया, पालक, आम और संतरा की खेती करते हैं. उनके मुताबिक, रसायनिक खेती में 1.50 लाख रुपए लगाने के बाद 7 लाख रुपए की कमाई हुई. जबकि प्राकृतिक खेती पर खर्च सिर्फ 50,000 रुपए हुआ और आय 8 लाख रुपए हुई.

उनके मुताबिक, शुरू में प्राकृतिक खेती में लोगों के कम रुझान को देखते हुए उनके मन में भी सवाल उठे थे, लेकिन जब परिणाम देखे तो वे उत्साहित हो गए. प्राकृतिक खेती में लगने वाले रोग पाउडरी मिल्डियू, गोभी में सूंडियों की समस्या और कीटों पर नियंत्रण हो गया. साथ ही भिंडी में प्ररोह और फल छेदक की समस्या से भी निजात बहुत तेजी से हुआ. वे कहते हैं कि प्राकृतिक खेती में फसल अधिक समय तक टिकी रहती है और उत्पादन भी पहने की तुलना में बेहतर हो रहा है. हिमाचल प्रदेश के कृषि विभाग ने मोहन सिंह की सफलता की कहानी बताई है.

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मोहन सिंह अब अनाज और सब्जियों के अलावा अपने आम के बाग और अन्य फलों में भी प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. वे गांव के अन्य किसानों को भी इस खेती को अपनाने को प्रेरित कर रहे हैं. 

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