Agri Business Idea: ये है कमाई कराने वाली खेती, कम समय में कमा सकते है बंपर मुनाफा
Agriculture Business Idea: तोरिया (लाही) कम समय में पकने वाली तिलहनी फसल है. यह ‘कैच क्रॉप’ के रूप में खरीफ और रबी के मध्य में बोई जाती है.
Rabi Toriya (Laahi): खरीफ सीजन की मुख्य फसल धान की कटाई का काम चालू है. जिन किसानों का खेत खाली हो गया है, वे अपने खेतों में तोरिया (Toriya) की बुआई कर सकते हैं. तोरिया (लाही) कम समय में पकने वाली तिलहनी फसल है. यह ‘कैच क्रॉप’ के रूप में खरीफ और रबी के मध्य में बोई जाती है. यह कम समय में बढ़ने वाली फसल है. यह कम लागत और कम समय में बेहतर मुनाफा दे जाती है. आइए जानते हैं तोरिया (लाही) की खेती करने का तरीका.
खेत की तैयारी और बीज की मात्रा
तोरिया (लाही) की बुआई से पहले खेती को अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताइयां कल्टीवेटर/हैरो से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी बना लेना चाहिए. तोरिया (लाही) का बीज 4 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. बीज से होने वाले रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित और प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए. इसके लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज को उपचारित करके ही बोयें.
ये भी पढ़ें- गेंदा फूल की खेती से एक बार में होगा ₹3-4 लाख का मुनाफा, खर्चा आएगा 40 हजार और सब्सिडी भी मिलेगी
तोरिया की उन्नत किस्में
तोरिया की उन्नत किस्में- टी.9, भानी, पी.टी.-303, पी.टी.-30 और तपेश्वरी है. ये किस्में 75 से 95 दिनों में तैयार हो जाती है. इनकी उत्पादन क्षमता 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
बुआई का समय
तोरिया (Toriya) की बुआई सितम्बर में की जानी चाहिए. गेहूं की अच्छी फसल लेने के लिए तोरिया की बुआई सितम्बर के पहले पखवारे में समय मिलते ही की जानी चाहिए. भवानी प्रजाति की बुआई सितम्बर के दूसरे पखवारे में ही करें. आईसीएआर के मुताबिक, बुआई देशी हल से करना फायदेमंद होता है. बुआई 30 सेमी की दूरी पर 3 से 4 सेमी की गहराई पर कतारों में करना चाहिए और पाटा लगाकर बीज को ढक देना चाहिए.
निराई-गुड़ाई और सिंचाई
घने पौधों को बुआई के 15 दिन के अंदर निकालकर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी कर देना चाहिए और खरपतवार खत्म करने के लिए एक निराई-गुड़ाई भी साथ में कर देनी चाहिए. अगर खरपतवार ज्यादा हो तो पैन्डीमेथलीन 30 ई. सी. का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के बाद और जमाव से पहले छिड़काव करना चाहिए. फूल निकलने से पहले जल की कमी के प्रति तोरिया (लाही) विशेष संवेदनशील है. इसलिए अच्छी उपज पाने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना जरूरी है. जल निकास की व्यवस्था रखना चाहिए.
ये भी पढ़ें- Success Story: ऑर्गेनिक फार्मिंग को प्रमोट करने लिए छोड़ दी नौकरी, अब बायो-फर्टिलाइजर से कमा रहे लाखों
फसल सुरक्षा
आरा मक्खी: इस कीट की सूड़ियां काले स्लेटी रंग की होती है जो पत्तियों को किनारों से अथवा पत्तियों में छेद कर तेजी से खाती है. तेज प्रकोप की दशा में पूरा पौधा पत्ती विहीन हो जाता है.
चित्रित बगः इस कीट के शिशु एंव प्रौढ़ चमकीले काले, नारंगी एवं लाल रंग के चकत्ते युक्त होते है. शिशु व प्रौढ़ पत्तियों, शाखाओं, तना फूलों एवं फलियों का रस चूसते है. जिससे प्रभावित पत्तियां किनारों से सूख कर गिर जाती है प्रभावित फलियों में दाने कम बनते है.
बालदार सूंड़ी: सूंड़ी काले व नारंगी रंग की होती है और पूरा शरीर बालों से ढका रहता है सूड़ियां शुरू में झुंड में रह कर पत्तियों को खाती है और बाद में पूरे खेत में फैल कर पत्तियों को खाती है.
माहूं: इस कीट के बच्चे पीलापन लिये हुए हरे रंग के होते है. जो पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों एवं नये फलियों के रस चूसकर कमजोर कर देते है. माहूं मधुस्राव करते है जिस पर काली फफूंद उग आती है जिससे फोटो सिंथेसिस में बाधा उत्पन्न होती है.
पत्ती सुरंगक कीट: इस कीट की सूंड़ी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती है जिसकी वजह से पत्तियों में अनियमित आकार की सफेद रंग की रेखाएं बन जाती है.
रोकथाम के उपाय
आरा मक्खी और बालदार सूंड़ी के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 5% डी.पी. की 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर बुरकाव अथवा मैलाथियान 50% ई.सी. की 1.50 लीटर या डाई क्लोरोवास 76% ई.सी. की 500 मिली० मात्रा अथवा क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी. की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए.
माहूं, चित्रित बग, एवं पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण के लिए डाईमेथेएट 30% ई.सी. अथवा मिथाइल-ओ-डेमेटान 25% ई.सी प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 600-750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए. एजाडिरेक्टिन (नीम ऑयल) 0.15% ई.सी. 2.5 ली प्रति हेक्टेयर की दर से भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
कटाई-मड़ाई
जब फलियां 75% सुनहरे रंग की हो जाए तो फसल को काटकर सुखा लेना चाहिए. इसके बाद मड़ाई करके बीज को अलग कर लें. देर से कटाई करने से बीजों के झड़ने की आशंका रहती है. बीज को अच्छी तरह सुखा कर ही स्टोर करें जिससे इसका कुप्रभाव दानों पर न पड़ें.