टपरवेयर, ये एक ऐसा ब्रांड है, जिसके प्रोडक्ट कभी हर घर के किचन में हुआ करते थे. बच्चों से लेकर बड़ों तक के टिफिन, पानी की बोतल और तमाम चीजें रखने के कंटेनर, हर चीज बहुत से लोग टपरवेयर की खरीदा करते थे. वहीं अब इस कंपनी का हालत इतनी खराब हो चुकी है कि यह दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है. अमेरिकी कंपनी टपरवेयर ब्रांड्स (Tupperware Brands) का कहना है कि उसकी सेल तेजी से गिर रही है और अब बिजनेस को बचाना मुश्किल हो गया है.

1950 के दशक में हुआ फेमस

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टपरवेयर ब्रांड्स की शुरुआत 1946 में केमिस्ट अर्ल टपर (Earl Tupper) ने की थी. दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1950 के दशक में यह फेमस होने लगा. इसके पीछे उनका सोचना था कि अगर वह ऐसा एयरटाइट प्लास्टिक कंटेनर बना दें, जैसा पेंट के डिब्बों में होता है, तो इससे वह युद्ध की मार झेल रहे परिवारों को मदद कर पाएंगे. इन एयरटाइट कंटेनर्स का इस्तेमाल कर के तमाम परिवार फूड वेस्ट यानी खाने की बर्बादी को रोक सकेंगे. हाल ही में युद्ध से उबरे लोगों को कुछ ऐसा ही प्रोडक्ट चाहिए था, जो उन्हें अर्ल टपर ने दे दिया.

महिलाएं रखती थीं 'टपरवेयर पार्टीज'

सेल्सवुमेन ब्राउनी वाइज ने इन प्रोडक्ट्स को घर-घर में पहुंचाने के लिए एक अनोखा तरीका निकाला था. उनकी पहल के तहत बहुत सी महिलाएं फूड स्टोरेज कंटेनर बेचने के लिए अपने घर में 'टपरवेयर पार्टीज' रखा करती थीं. इनमें दूसरी महिलाएं आतीं और टपरवेयर के प्रोडक्ट देखतीं और फिर खरीदती थीं. इस तरह कंपनी के प्रोडक्ट तेजी से महिलाओं को इंप्रेस करने लगे, जिसके बाद धीरे-धीरे इसके प्रोडक्ट दुनियाभर में लोकप्रिय होने लगे.

कुछ साल पहले शुरू हुआ था बुरा दौर

टपरवेयर के प्रोडक्ट्स की सेल पिछले कुछ सालों से लगातार गिर रही थी. हालांकि, कोरोना काल में कंपनी की सेल बढ़ी थी, क्योंकि लोग घर में खूब कुकिंग कर रहे थे और उसे संभाल कर रखने में कंपनी के कंटेनर इस्तेमाल हो रहे थे. ऐसे में कंपनी ने अपने प्रोडक्ट्स को नया रूप देकर युवाओं के बीच अपनी पहुंच को मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन तगड़े कॉम्पटीशन के दौर में कंपनी टिक नहीं पाई. कंपनी लगातार कर्ज ले लेकर खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती रही, लेकिन तेजी से घटते रेवेन्यू के चलते अब कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच चुकी है. 

कोरोना में बढ़ी सेल, कॉम्पटीशन नहीं झेल सकी कंपनी

पिछले कुछ साल से टपवेयर लगातार घटती बिक्री से जूझ रही थी। कोरोना के दौरान इसकी बिक्री जरूर बढ़ी, जब लोग घरों से बाहर नहीं निकाल रहे थे। उस वक्त कुकिंग अधिक हो रही थी और खाना भी ज्यादा बच रहा था। टपरवेयर ने अपने प्रोडक्ट को नया रूप देकर युवाओं के बीच दोबारा पैठ बनाने की भी कोशिश की, लेकिन वह प्रतिस्पर्धियों से अलग दिखने में नाकाम रही। उस पर कर्ज लगातार बढ़ता गया और वह घटती आमदनी के चलते उसे चुकाने में असफल रही।

70 करोड़ डॉलर का है कर्ज

टपरवेयर ब्रांड्स ने पिछले ही साल यह साफ कर दिया था कि अगर उसे फंडिंग नहीं मिली तो वह दिवालिया हो सकती है. कच्चे माल, मजदूरी और ट्रांसपोर्ट की लागत तेजी से बढ़ने के चलते कंपनी के मुनाफे को तगड़ा झटका लगा, जिसके चलते कंपनी का मार्जिन प्रभावित हुआ है. बताया जा रहा है कि कंपनी पर करीब 70 करोड़ डॉलर यानी लगभग 5870 करोड़ रुपये का कर्ज है और दिवालिया प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिए टपरवेयर और लेनदारों के बीच बातचीत भी शुरू हो गई है.