खाद्य तेल उद्योग ने देश के तिलहन उत्पादक किसानों और खाद्य तेल उद्योग के हित में पामोलिन के आयात पर शुल्क बढ़ाने की सरकार से गुहार लगाई है. उद्योग का कहना है कि देश में खपत के मुकाबले तेल-तिलहन का उत्पादन कम होने के बावजूद खाद्य तेल उद्योग मंदी की मार झेल रहा है. पंजाब ऑयल मिलर्स एण्ड ट्रेडर्स एसोसिएशन की यहां जारी विज्ञप्ति के अनुसार विदेशों से सस्ते पाम तेल का आयात बढ़ने की वजह से देश में किसानों को तिलहन का भाव समर्थन मूल्य से नीचे जाने का अंदेशा सताता रहता है. 

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एसोसिएशन ने पाम तेल के आयात पर शुल्क को बढ़ाकर 80 प्रतिशत करने की मांग की है. उसका कहना है कि इससे पाम तेल का आयात कम होगा, विदेशी मुद्रा बचेगी और देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. उद्योग का कहना है कि पॉम आयल के आयात पर सरकार 300 प्रतिशत तक शुल्क लगा सकती है. सरकार ने इस साल मार्च में कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क को 30 से बढ़ाकर 44 प्रतिशत कर दिया था.

प्रभावी शुल्क 48.4 प्रतिशत तक पहुंच गया. आरबीडी पामालिन पर यह 40 से बढ़ाकर शुल्क 54 प्रतिशत कर दिया गया. इसका प्रभावी आयात शुल्क 59.4 प्रतिशत तक पहुंच गया. इसके बावजूद पाम तेल का आयात मूल्य कम हो गया. 

उद्योग ने सुझाव दिया है कि सरकार को सोयाबीन डीगम और सोयाबीन रिफाइंड पर एक समान आयात शुल्क लगा देना चाहिये क्योंकि सोयाबीन रिफाइंड का आयात नहीं होता है. सोयाबीन डीगम पर शुल्क बढ़ा दिया जाना चाहिए. पंजाब ऑयल मिलर्स एंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील जैन ने कहा, ‘‘सस्ते पाम तेल का आयात रोकने के लिये यदि ठोस कदम नहीं उठाये गए तो देश का तेल उद्योग खोखला हो जाएगा.

पिछले तेल वर्ष में देश में कुल मिलाकर 154 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया गया. नवंबर 2017 से अगस्त 2018 तक देश में 70 लाख टन से अधिक पाम तेल का आयात हो चुका है. 2018-19 में इसके 92.6 लाख टन तक पहुंच जाने का अनुमान है.’’देश के कुल खाद्य तेल आयात में पाम तेल का हिस्सा आधे से अधिक होता है.

(इनपुट एजेंसी से)