भारत सरकार की ओर से 2030-31 तक देश में स्टील उत्पादन को 300 मिलियन टन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है. इसको ध्यान में रखते हुए स्टील के सबसे बड़े उत्पादक व देश की सरकारी कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटेड (सेल) ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं. कंपनी के अध्यक्ष अनिल कुमार चौधरी ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर में स्थित सेल चंद्रपुर फेरो अलॉय संयंत्र (सीएफपी) के दौरे के दौरान कहा कि, “यह समय इस्पात उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ इस्पात उत्पादन में लगने वाले इनपुट के उत्पादन में भी आत्मनिर्भर बनने का है.

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चंद्रपुर प्लांट के उत्पादन को बढ़ाया जाएगा

सीएफपी सेल के इस्पात उत्पादन के लिए मैंगनीज आधारित फेरो अलॉय की ज़रूरत का करीब 40% उत्पादन करता है, आज ज़रूरत फेरो अलॉय उत्पादन की निर्धारित क्षमता को वास्तविक उत्पादन में बदलने की है. उन्होंने कहा कि चंद्रपुर प्लांट की क्षमता का पूरा प्रयोग कर हम सेल के कुल फेरो अलॉय की ज़रूरत का करीब दो तिहाई आंतरिक रूप से पूरा कर पाएंगे, जो न केवल रणनीतिक रूप से हमारे लिए महत्वपूर्ण होगा बल्कि इससे लागत को भी नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी.”फेरो अलॉय का प्रयोग स्टील के उत्पादन में होता है.

लक्ष्य को पूरा करने के लिए होगा हर संभव प्रयास

सेल अध्यक्ष ने सेल के सभी संयंत्रों और इकाइयों को समान रूप से महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि “सेल, इस्पात मंत्रालय के 2030-31 तक 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इस दौरान अपनी उत्पादन 50 मिलियन टन तक ले जाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है. इससे आने वाले समय में फेरो अलॉय की और अधिक ज़रूरत होगी. इसके लिए सीएफपी को अपनी भूमिका निभाने के लिए अभी से तैयार रहने की जरूरत है.” उन्होंने आगे कहा कि हम उत्पादन में लगने वाली सामग्री और संसाधनों के मामले में जितना अधिक आत्मनिर्भर होंगे, उतना ही अधिक मजबूती से अपने बाज़ार का विस्तार कर पाएंगे.  

सबसे बड़ा उत्पादक है चंद्रपुर प्लांट

सेल का चंद्रपुर फेरो अलॉय संयंत्र देश का सबसे बड़े फेरो अलॉय उत्पादक है और साथ ही अकेली सार्वजनिक कंपनी भी है. इस संयंत्र की हाई कार्बन फेरो मैंगनीज की स्थापित क्षमता 1,90,000 टन प्रतिवर्ष है या सिलिको मैंगनीज की स्थापित उत्पादन क्षमता 1,30,000 टन प्रतिवर्ष है. सीएफपी तीन तरह के फेरो अलॉय हाई कार्बन फेरो मैंगनीज, सिलिको मैंगनीज और मीडियम कार्बन फेरो मैगनीज का उत्पादन करता है. महाराष्ट्र इलेक्ट्रोस्मेल्ट लिमिटेड के नाम की इस कंपनी का सेल में विलय जुलाई 2011 में हुआ और तब से यह सेल की फेरो अलॉय की आंतरिक जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.