क्रिप्‍टो करंसी मामले में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दाखिल किया. केंद्रीय बैंक ने अपने शपथपत्र में कहा कि बिटकॉइन की तरह क्रिप्टो करंसी की कोई कानूनी मान्यता नहीं है. बैंक ने कहा कि क्रिप्टो करंसी न तो करंसी है और न ही पैसा. इतना ही नहीं केंद्रीय बैंक ने यह भी कहा कि इसकी वैध पेमेंट सिस्टम में कोई मान्यता नहीं है. आरबीआई ने कहा कि वह पहले ही इसके रिस्क को लेकर बैंक और जनता को आगाह कर चुका है. कमेटी इसके दूसरे पहलुओं पर भी गौर कर रही है. 

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क्‍या है मामला

बिटकॉइन एक वर्चुअल करेंसी (क्रिप्टो करंसी) है. इसे एक ऑनलाइन एक्सचेंज के माध्यम से कोई भी खरीद सकता है. इसकी खरीद-फरोख्त से फायदा लेने के अलावा भुगतान के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. फिलहाल, भारत में एक बिट क्वॉइन की कीमत करीब 65 हजार रुपए हैआरबीआई ने इस पर प्रतिबंध लगा रखा है. सेंट्रल बैंक के फैसले के तहत बैंक या ई-वॉलेट के जरिये बिटकॉइन को नहीं खरीद सकते. यह कदम क्रिप्टोकरंसी के बढ़ते धोखाधड़ी के मामलों के बाद उठाया गया. आरबीआई ने बैंक समेत सभी नियमित इकाइयों से बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करंसी मुद्रा में लेन-देन करने वाली कंपनियों को सेवा नहीं देने के बारे में कहा था. ग्राहकों के हितों की रक्षा तथा मनी लांड्रिंग पर लगाम लगाने के इरादे से केंद्रीय बैंक की तरफ से यह निर्देश दिया गया था.

ग्राहकों के हित को ध्यान में रखते हुए उठाया कदम

वित्त वर्ष 2018-19 की अपनी पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद आरबीआई ने यह भी कहा था कि आभासी मुद्रा समेत नए नए प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तनों से वित्तीय प्रणाली की दक्षता में सुधार होगा तथा वह अधिक समावेशी होगी. केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘हालांकि क्रिप्टोकरंसी और क्रिप्टो संपत्ति कही जाने वाली आभासी मुद्रा के चलन से उपभोक्ताओं के हितों के सरंक्षण, बाजार में निष्पक्षता और मनी लांड्रिंग समेत अन्य बातों को लेकर चिंता बढ़ी है.’

2009 में हुई थी बिटकॉइन की शुरुआत

2008 में पहली बार बिटकॉइन को लेकर एक लेख प्रकाशित हुआ था. हालांकि, इसकी शुरुआत 2009 में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप हुई. इसे अज्ञात कम्प्यूटर प्रोग्रामर या इनके समूह ने सातोशी नाकामोटो के नाम से बनाया.