रतन टाटा (Ratan Tata) सिर्फ एक सफल उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्‍होंने टाटा ग्रुप (Tata Group) को नई बुलंदियों को पहुंचाकर देश-दुनिया में बहुत बड़ा नाम कमाया. इन सब के बावजूद वह हमेशा जमीन से जुड़कर रहे. बुधवार देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उनका निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से उनकी तबियत काफी खराब थी. रतन टाटा (Ratan Tata) को बेशक सफल बिजनेसमैन के तौर पर पहचाना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग ये जानते हैं कि रतन टाटा ने अपनी करियर की शुरुआत कर्मचारी के तौर पर की थी. उन्‍होंने पहली नौकरी टाटा ग्रुप में नहीं की थी, बल्कि दूसरी कंपनी को जॉइन किया था और उसी कंपनी में काम करते हुए उन्‍होंने टाटा ग्रुप में नौकरी लेने के लिए अपना रिज्‍यूमे बनाया था. आइए जानते हैं उनके जीवन का ये मशहूर किस्‍सा.

IBM में की पहली नौकरी

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ये उन दिनों की बात है जब रतन टाटा पढ़ाई के लिए अमेरिका गए हुए थे. वहां उन्होंने आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से हासिल की और उसके बाद वहीं पर बसने का मन बना लिया था. लेकिन इस बीच उनकी दादी, लेडी नवजबाई (Lady Navajbai) की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें भारत लौटना पड़ा. भारत लौटने के बाद रतन टाटा ने पहली नौकरी टाटा ग्रुप में नहीं की, बल्कि IBM को जॉइन कर लिया और उनके परिवार में किसी को कानों कान खबर नहीं लगी.

JRD Tata ने लगाई डांट

कहा जाता है कि जब टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा (JRD Tata) को इस बात की खबर मिली तो वो काफी नाराज हुए और उन्‍होंने रतन टाटा को फोन करके कहा कि 'तुम भारत में रहकर IBM के लिए  नौकरी नहीं कर सकते.' इसके साथ ही उन्‍होंने रतन टाटा को अपना बायोडाटा शेयर करने के लिए कहा.

IBM में ही तैयार किया बायोडाटा

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उस समय रतन टाटा के पास अपना बायोडाटा नहीं था, लिहाजा उन्होंने IBM ऑफिस में इलेक्ट्रिक टाइपराइटर्स पर टाइप करके वहीं अपना रिज्‍यूम तैयार किया. अपना बायोडाटा शेयर करने के बाद साल 1962 में टाटा इंडस्ट्रीज में नौकरी मिल गई थी. टाटा परिवार के सदस्‍य होने के बावजूद नौकरी लेने के बाद रतन टाटा को अपनी कंपनी में सारे काम करने पड़े. सारे कामों का अनुभव लेने के बाद वो कंपनी के सर्वोच्‍च पद पर पहुंचे.

1991 में बने टाटा संस और टाटा ग्रुप के अध्‍यक्ष

1991 में रतन टाटा ने टाटा संस और टाटा ग्रुप का अध्‍यक्ष पद संभाला. उन्‍होंने 21 वर्षों तक टाटा समूह का नेतृत्व किया और इसे बुलंदियों पर पहुंचाया. उनके नेतृत्‍व में टेटली टी, जगुआर लैंड रोवर और कोरस का अधिग्रहण किया गया. उनकी देखरेख में टाटा ग्रुप 100 से अधिक देशों में फैल गया. टाटा नैनो कार भी रतन टाटा की ही अवधारणा थी.