देश में लंबे समय तक दालों की पैदावार न बढ़ने के बाद अब सरकार की कोशिशों का असर दिखाई देने लगा है. देश में दलहन की पैदावार बढ़कर 2.52 करोड़ टन हो गई है. इसके साथ ही देश दलहन क्रांति का आगाज हो गया है. रबी फसल पर अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना (एमयूएलएलएआरपी) के समन्वय संजीव गुप्ता ने बताया कि 2009-10 से 2017-18 में दलहन का उत्पादन बढ़कर 2.52 करोड़ टन तक पहुंच गया है. 

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उन्होंने असम कृषि विश्वविद्यालय (एएयू) की वार्षिक बैठक में यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि लगातार दो दशकों तक दलहन उत्पादन 1.40 करोड़ टन पर स्थिर बना रहा. ऐसे में ये देश के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है.

उन्होंने कहा कि मसूर, राजमा, मटर तथा कुछ अन्य गौण दलहनों के मामले में नए इलाकों को इनकी खेती के तहत लाने की गुंजाइश है. एक अनुमान के मुताबिक देशभर में 30 लाख हेक्टेयर भूमि को इसके तहत लाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि 1910 में बिहार के पूसा में इम्पीरियल कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना के साथ 20वीं सदी की शुरुआत में देश में इन फसलों को बेहतर बनाने पर काम किया गया. 

इससे पहले 2015 में दाल की किल्लत के चलते कीमतें आसमान पर चढ़ गई थीं. इस दौरान अरहर की दाल 200 रुपये प्रति किलो के भाव को पार कर गई. इसके बाद सरकार को भारी दबाव का सामना करना पड़ा क्योंकि देश में अधिकांश आबादी अपनी प्रेटीन संबंधी जरूरतों के लिए दालों पर ही निर्भर है. सरकार ने कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए हर संभव उपाए किए. इसके लिए दालों का आयात किया और दाल पर स्टॉक की लिमिट भी तय कर दी. सरकार ने दाल का बफर स्टॉक तैयार करने का भी फैसला किया. हालांकि अब दालों का उत्पादन रिकार्ड स्तर तक बढ़ने के बाद सरकार ने राहत की सांस ली है.

(एजेंसी इनपुट के साथ)