पार्श्वनाथ डेवलपर्स को जोर का झटका, दिवाला कानून के तहत कार्रवाई का एनसीएलटी ने दिया आदेश
NCLT: एनसीएलटी दिल्ली के अध्यक्ष न्यायाधीश एम. एम. कुमार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने पार्श्वनाथ लैंडमार्क डेवलपर्स से जुड़े सभी कर्मचारियों से कंपनी के मामले में आरपी को सहयोग करने का निर्देश दिया है.

याचिकाकर्ता को नौ साल बाद भी मकान का कब्जा नहीं मिला है.
राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने रीयल एस्टेट क्षेत्र की कंपनी पार्श्वनाथ लैंडमार्क डेवलपर्स के खिलाफ दिवाला कानून के तहत समाधान की कार्रवाई शुरू करने की अनुमति दे दी है और समाधन पेशेवर भी तय कर दिया है. पार्श्वनाथ लैंडमार्क, पार्श्वनाथ डेवलपर्स की अनुषंगी कंपनी है जो दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में आवासीय परियोजनाओं का विकास करती है. एनसीएलटी की दिल्ली शाखा ने तीन मकान खरीदारों द्वारा कंपनी के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू करने की अर्जी दाखिल कर ली है. साथ ही इसके लिए यशजीत बरार को अंतरिम समाधान पेशेवर (आरपी) के तौर पर नियुक्त किया है. याचिकाकर्ताओं ने कंपनी पर आवास परियोजना में देरी करने और उनका पैसा वापस नहीं करने के आरोप में दिवाला कानून के तहत कार्रवाई की मांग की है.
कर्मचारियों से सहयोग करने का निर्देश
एनसीएलटी दिल्ली के अध्यक्ष न्यायाधीश एम. एम. कुमार की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने पार्श्वनाथ लैंडमार्क डेवलपर्स से जुड़े सभी कर्मचारियों से कंपनी के मामले में आरपी को सहयोग करने का निर्देश दिया है. इसमें कंपनी के निदेशक, प्रवर्तक या प्रबंधन से जुड़ा कोई भी कार्मिक शामिल है. एनसीएलटी ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि किसी पूर्व अधिकारी या प्रबंधन के व्यक्ति ने कोई अवैध लेनदेन किया है तो समाधान पेशेवर को उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करने की स्वतंत्रता होगी.
ला ट्रॉपिकाना परियोजना मामला
अर्जी दायर करने वाली अलका अग्रवाल और दो अन्य ग्राहकों ने पार्श्वनाथ लैंडमार्क डेवलपर्स की दिल्ली में खैबर पास इलाके में ला ट्रॉपिकाना परियोजना में फ्लैट बुक कराए थे. उन्होंने कंपनी के साथ पहली अक्तूबर 2009 को सौदे पर दस्तखत किए थे. इसके अनुरार उन्हें 36 महीने में मकान का कब्जा मिलना था. इसके अलावा छह महीने की अनुकंपा अवधि भी रखी गई थी. नौ साल बाद भी उन्हें मकान का कब्जा नहीं मिला है. इस दौरान ये खरीदार कंपनी को बार-बार फ्लैट देने या पैसा लौटाने की मांग करते रहे.

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पार्श्वनाथ ने दी थी दलील
पार्श्वनाथ के वकील ने लिखित में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि इस अर्जी पर कार्रवाई नहीं की जा सकती क्योंकि काम में देरी कई मंजूरियों और जमीन के स्वामित्व को लेकर के अब तक लंबित होने के कारण है. कंपनी ने कहा कि ये खरीदार शुरू में ही इस बात पर सहमत थे कि परियोजना सभी प्रकार की मंजूरियों के बाद निर्माण कार्य चालू होने के 36 माह में पूरा होगा. कंपनी की ओर से यह भी कहा गया था कि शिकायतकर्ता कोई वित्तीय ऋणदाता नहीं है. एनसीएलटी ने कंपनी की आपत्ति नहीं मानी और कहा कि ग्राहकों से धन मकान की परियोजना के लिए लिया गया था.
ऐसे में इस कर्ज का वाणिज्यिक प्रभाव होता है और यह वित्तीय कर्ज की परिधि में आता है. एनसीएलटी ने कहा कि चूंकि कंपनी ने बकाया वित्तीय ऋण को नहीं चुकाया है जो एक लाख रुपये से ऊपर का है लिहाजा दिवाला एवं ऋण-शोधन अक्षमता संहिता की धारा 7(5)(क) के तहत मौजूदा अर्जी को सुनवाई के लिए दाखिल की जाती है.
(इनपुट एजेंसी से)
07:52 PM IST