विशेषज्ञों के मुताबिक रुपये के अवमूल्यन और रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों से गैर-प्रवासी भारतीयों (एनआरई) की दिलचस्पी इस क्षेत्र में बढ़ी है. रुपया पिछले एक सप्ताह से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 73 के आसपास बना हुआ है. 

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सीबीआरई के भारत, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका के प्रमुख अंशुमान मैग्जीन ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा, 'रुपये में गिरावट को सांस्थानिक निवेशक और व्यक्तिगत खरीदार निवेश के मौके के तौर पर देख रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में हमने गौर किया है कि एनआरई लोग बहुत अधिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं. इस क्षेत्र में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने के लिए समय समय पर किये गए सुधारों से यह भावना और मजबूत हुई है.' 

देश का रीयल एस्टेट उद्योग करीब तीन हजार अरब रुपये का है, जिसमें से 7-8 प्रतिशत मकानों को एनआरआई खरीदते हैं.

निसुस फाइनेंस के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ अमित गोयनका ने कहा, 'इस प्रकार हर साल एनआरआई करीब 21,000-30,000 करोड़ रुपये की खरीदारी करते हैं. रुपये के कमजोर होने की वजह से हुए अवमूल्यन को एनआरआई 10 प्रतिशत तक की छूट के तौर पर देख रहे हैं.' 

उन्होंने कहा कि पिछले दो से तीन महीने के झुकाव पर गौर किया जाए तो एनआरआई द्वारा खरीद का आंकड़ा दस से 12 फीसदी तक पहुंच सकता है. नरेडको के राष्ट्रीय अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी के मुताबिक गैर-अनिवासी भारतीयों के लिए देश में 2012 जैसी ही स्थिति है, जब रुपये के मूल्य में गिरावट आयी थी.

उन्होंने कहा, 'रीयल एस्टेट कारोबार एक बार फिर से तेजी पकड़ रहा है, रेरा से चीजें बेहतर हुई हैं, जहां परिसंपत्तियों के मूल्य पहले से ही 10-15 तक नीचे हैं, वहीं रुपये के वर्तमान मूल्य से 10-15 फीसदी का और अंतर आया है. इस स्थिति में एनआरआई खरीदार लौट रहे हैं.' 

प्रोपर्टी पोर्टल ज्वेस्ता.कॉम के संस्थापक राजन डांग ने हीरानंदानी के बयानों का समर्थन करते हुए कहा कि रुपये में गिरावट से भारत में निश्चित तौर पर संपत्तियों की मांग बढ़ेगी और एनआरआई लोग अच्छे रिटर्न की उम्मीद में रीयल एस्टेट बाजार में निवेश करना चाहते हैं.