#MeToo: इंश्योरेंस करा रही हैं कंपनियां, जानिए कैसे होता है 'यौन शोषण के दावों' का बीमा?
भारत में मीटू अभियान के जोर पकड़ने के साथ ही कंपनी अब कानूनी लड़ाई और कर्मचारियों के इस्तीफे से होने वाले नुकसान से बचने के लिए बीमा की शरण में जा रही हैं. इसके लिए वो एंप्लॉयमेंट प्रैक्टिसेज लाइबिलिटी (ईपीएल) बीमा की जरूरत महसूस कर रही हैं.
भारत में मीटू अभियान के जोर पकड़ने के साथ ही कंपनी अब कानूनी लड़ाई और कर्मचारियों के इस्तीफे से होने वाले नुकसान से बचने के लिए बीमा की शरण में जा रही हैं. इसके लिए वो एंप्लॉयमेंट प्रैक्टिसेज लाइबिलिटी (ईपीएल) बीमा की जरूरत महसूस कर रही हैं. ये बीमा कंपनी के वरिष्ठ कर्मचारियों पर किसी दूसरे कर्मचारी द्वारा आरोप लगाने की स्थिति में कंपनी को होने वाले नुकसान से उसे बचाता है.
विदेशों में ऐसे बीमा कवर बेहद आम हैं, क्योंकि वहां कार्यस्थल पर भेदभाव के मामले अक्सर अदालतों में पहुंचते हैं, लेकिन भारत में आमतौर पर ऐसा नहीं होता. इसलिए यहां कंपनियां ऐसा कोई कवर नहीं लेती थीं, लेकिन हाल में मीटू अभियान के बाद ऐसी पॉलिसी के बारे में पूछताछ काफी बढ़ गई है. इन पॉलिसी को डॉयरेक्टर्स एंड ऑफिसर्स कवर कहते हैं, जिसमें कंपनी के सीनियर अधिकारियों को कंपनी से संबंधी मामलों में कानूनी लड़ाई के लिए खर्च दिया जाता है.
ईपीएल के तहत कर्मचारियों के दूसरे कर्मचारियों द्वारा इन मामलों में आरोप लगाए जाने पर बीमा कवर दिया जाता है-
1. लिंग, नस्ल, उम्र और अपंगता के आधार पर भेदभाव.
2. गलत तरीके से बर्खास्तगी.
3. शोषण.
4. कर्मचारियों से संबंधित अन्य मामले, जैसे प्रमोशन न देना.
आम तौर पर मझोली और छोटी कंपनियों को ऐसे बीमा कवर की अधिक जरूरत होती है क्योंकि बड़ी कंपनियों के पास अपना लीगल डिपार्टमेंट होता है और वो बड़े वकीलों का खर्च भी उठा सकती हैं. अनुचित जोक या फोटो भेजना, भद्दा भाषा का इस्तेमाल, धमकी इस सभी को गलत व्यवहार माना गया है और इस कारण कंपनी को यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ सकता है. यदि कोई कर्मचारी अपने साथी कर्मचारी को परेशान करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है, तो इसे भी दुर्व्यहार माना जाएगा. आमतौर पर पाया गया है कि रेस्टोरेंट, रिटेल और आर्ट या इंटरटेनमेंट जैसे क्षेत्रों में दुर्व्यवहार के मामले ज्यादा सामने आते हैं.