खेल का मैदान हो या फिर बॉर्डर, भारत और पाकिस्तान का नाम जहां भी आता है मामला संवेदनशील ही होता है. खासकर जब बात खेल और कारोबार की हो. पाकिस्तान ने भारत के साथ कारोबारी रिश्ते खत्म करने का फैसला लिया. लेकिन, पाकिस्तान खुद अपने कारोबार को संभाल नहीं पा रहा है. हालात ये है कि भारत से छीने कारोबार की विरासत को भी वो संभाल नहीं पाया और धीरे-धीरे सभी कारोबार लगभग ठप पड़ गए.

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साल 2010 में पाकिस्तान ने मेरठ स्पोर्टस इंडस्ट्री को जबरदस्त झटका देते हुए दो सबसे खास प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग उसके हाथ से छीन ली थी. क्रिकेट बॉल का सबसे बड़ा कारोबार भारत के मेरठ शहर में होता था, लेकिन कुछ समय से राज्य सरकार के कड़े नियम और कुछ एनजीओ के दबाव ने इस कारोबार की रीढ़ तोड़ दी. वहीं, भारत का पेशेवर खेल हॉकी की स्टिक भी कभी मेरठ और जालांधर में बना करती थी, लेकिन ये कारोबार भी धीमे-धीमें पाकिस्तान शिफ्ट हो गया. लेकिन, बर्बादी ने पाकिस्तान को ऐसा घेरा कि 2018 तक ये कारोबार सिमट कर रह गए.

पाकिस्तान में हॉकी स्टिक का कारोबार

स्पोर्ट्स काउंसिल ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के सदस्य और एसजीपीसी के डायरेक्टर सुमेश अग्रवाल की मानें तो एक समय में मेरठ में हॉकी स्टिक का कारोबार करीब 40 करोड़ रुपए का कारोबार होता था. एक समय था जब पाकिस्तान में ये कारोबार इससे 10 फीसदी ज्यादा था. पाकिस्तान से हॉकी का एक्सपोर्ट ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, जर्मनी और न्यूजीलैंड जैसे देशों में होता था. लेकिन, धीरे-धीरे कारोबार सिमटता गया और पाकिस्तान की हॉकी इंडस्ट्री बंद होने के मुहाने पर खड़ी है. 2018 तक पाकिस्तान में हॉकी स्टिक का कारोबार सिर्फ 14 फीसदी रह गया. 

पाकिस्तान में क्रिकेट बॉल का कारोबार

मेरठ से क्रिकेट बॉल की सप्लाई इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में होती थी, लेकिन कुछ वर्षों में इसमें गिरावट के चलते कारोबारियों ने इससे किनारा कर लिया. बाकी कसर पाकिस्तान की बॉल इंडस्ट्री ने पूरी कर दी. साल 2016 तक पाकिस्तान में किक्रेट गुड्स में अकेले क्रिकेट बॉल का कारोबार 42 फीसदी था. लेकिन, 2018 तक यह कारोबार भी औंधे मुंह गिर पड़ा. अब हालात ये है कि पाकिस्तान की क्रिकेट बॉल इंडस्ट्री भी बंद होने की कगार पर है और सिमट कर सिर्प 18 फीसदी पर रह गया है. भारत और पाकिस्तान के बीच ट्रेड बंद होना इसका एक कारण है.

मेरठ में क्रिकेट बॉल का कारोबार

सुमेश अग्रवाल की मानें तो वर्ष 2009 तक मेरठ में क्रिकेट बॉल का कारोबार 60 फीसदी तक था. 2014 तक यह सिमट कर 30 फीसदी रह गया और आज के हालात ये हैं कि कारोबार महज 20-25 फीसदी रह गया है. सालाना कारोबार के मुताबिक, कभी मेरठ की इंडस्ट्री बॉल से 450 करोड़ का टर्नओवर निकालती थी, लेकिन अब ये लगभग 100 करोड़ का ही रह गया है. पहले क्रिकेट बॉल की कुल 775 (छोटी बड़ी मिलाकर) यूनिट्स थीं, जबकि आज के समय में कुल 150 यूनिट्स काम कर रही हैं. वहीं, हॉकी स्टिक के कारोबार बिल्कुल ठप हो चुका है.

भारत में क्यों ठप पड़ा कारोबार

- पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया में बॉल कारोबार के बढ़ने से हुआ नुकसान.

- पाकिस्तान ने मेरठ से ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड का बड़ा बाजार छीना.

- पिछले एक दशक में मात्र 12 फीसदी की ग्रोथ ही हासिल कर पाई इंडस्ट्री.

- चाइल्ड लेबर एक्ट के चलते इंडस्ट्री को नहीं मिली सस्ती लेबर.

- मशीनों के आने से रोजगार छीना और इंडस्ट्रीज को भी स्किल्ड लेबर नहीं मिली.

- 450 करोड़ से घटकर 100 करोड़ तक पहुंचा कारोबार.

- इंडस्ट्रियल लैंड की कमी और सरकार के सख्त नियमों के चलते नई यूनिट्स नहीं लगी.

- रॉ मैटेरियल की कमी के चलते भी कारोबार में आई गिरावट.

अवैध कारोबार ने बिगाड़ा खेल

बॉल इंडस्ट्री के लिए राज्य सरकार से एक परमिट इश्यू होता है इसके बाद लेदर इम्पोर्ट करने के लिए लाइसेंस की भी जरूरत होती है. लेकिन, कुछ कारोबारी ने अवैध तरीके से बिना लाइसेंस के इस कारोबार को शुरू करके डोमेस्टिक स्तर पर इसे बेचना शुरू कर दिया. इसके चलते मूविंग इंडस्ट्रीज को करोड़ों का नुकसान हुआ है.

क्या है कारोबार शुरू करने का तरीका

इंडस्ट्रियल यूनिट लगाने के लिए कारोबारी को अपनी लैंड चाहिए. अगर आपके पास छोटी लैंड भी अवेलेबल है तो कारोबार कुछ मशीनों और स्किल्ड लेबर के साथ शुरू किया जा सकता है. इसमें लागत भी 2.5 लाख से 10 लाख रुपए तक आती है.

क्या मिलती हैं सुविधाएं

- लेदर इम्पोर्ट के अलावा यूनिट के लिए राज्य सरकार की ओर से इनकम टैक्स और जीएसटी में थोड़ी छूट मिलती है.

- रॉ मैटेरिलय की आसान उपलब्धता.

- प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन आसानी से मिल जाता है.

- पब्लिक सेक्टर के बैंक या को-ऑपरेटिव बैंक से वित्तीय मदद.

- उत्तर प्रदेश फाइनेंस कॉर्पोरेशन भी क्षेत्र में नई यूनिट्स को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं.