HLL Lifecare Divestment: उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (CPSE) एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड की विनिवेश प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायालय ने कहा कि वह उस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है जो ‘शुद्ध रूप से नीतिगत मुद्दे’ से संबंधित है. गैर सरकारी संगठन ‘सबका सहयोग सोसायटी’ की ओर से दायर याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति- पी एस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने की.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नीतियों से जुड़ा है मामला

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पीठ ने कहा, “संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में जो मुद्दा उठाया गया है, वह नीतियों से जुड़ा है. हिंदुस्तान लेटेक्स लिमिटेड (एचएलएल) के संबंध में सरकार का विनिवेश निर्णय शुद्ध रूप से नीतिगत मुद्दा है. हम अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं.’’ संविधान का अनुच्छेद 32 लोगों को अधिकार देता है कि जब उन्हें लगे कि उन्हें उनके अधिकारों से अनुचित रूप से वंचित किया गया है तो वे न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं.

क्यों विनिवेश के खिलाफ डाली गई है याचिका?

एचएलएल लाइफकेयर गर्भ निरोधकों, महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी उत्पादों, अस्पताल की आपूर्ति के साथ-साथ अन्य दवा उत्पादों का विनिर्माण और विपणन करती है. याचिकाकर्ता ने कहा था कि एचएलएल लाइफकेयर कोविड-19 महामारी और टीकों के दौरान पीपीई किट की खरीद में एक नोडल एजेंसी थी. उसने कहा कि महामारी के दौरान एचएलएल लाइफकेयर की भूमिका उल्लेखनीय थी और मंत्रालय ने इसे कोविड से लड़ने के लिए आपातकालीन चिकित्सा वस्तुओं की खरीद और आपूर्ति के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया था. याचिका में कहा गया है कि टीकाकरण अभियान अभी भी चल रहा है, ऐसे में इस महत्वपूर्ण मोड़ पर इस इकाई का निजीकरण नहीं किया जा सकता है. सरकार ने मार्च, 2022 में कहा था कि उसे कंपनी के लिए कई शुरूआती बोलियां मिली हैं

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