केतन जोशी, अहमदाबाद: शादी-विवाह के मौके पर पिछले कुछ सालों से दूल्हा-दुल्हन की ड्रेस और परिवार के डिजाइनर कपड़े को रेंट (किराये) पर लेने का ट्रेंड चल पड़ा है. इससे ज्यादा खर्च भी नहीं होता और उस पैसे का दूसरी जगह इस्तेमाल भी हो जाता है. आखिरकार इस ट्रेंड के पीछे लोगों की सोच भी काफी रोचक है. 

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दूल्हे का तर्क

अहमदाबाद की एक रेंट पर ड्रेस देने वाली दुकान पर पेशे से इंजीनियर प्रतीक सतीशचंद्र नाम के एक ग्राहक कहते हैं कि अगर वह पैसे जो कि नए कपड़े बनवाने पर लगते हैं उसको अगर भाड़े पर लिया जाए और जो बचत होती है. बचत के पैसे को हनीमून पर खर्च किया जाए तो यह ज्यादा अर्थपूर्ण और उपयोगी होगा. उनकी शादी 9 दिसंबर को है. उनका कहना है कि जो शेरवानी मुझे 25,000 में खरीदना होगा, वह अगर 4000 में भाड़े पर मिल रही है तो इस पर ज्यादा खर्च करना मुनासिब नहीं है इसलिए रेंट पर ले रहा हूं.

अक्सर दोबार नहीं पहनते हैं लोग

ऐसा अक्सर देखा जाता है कि शादी में दूल्हा और दुल्हन परंपरागत ड्रेस पहनते हैं जो अमूमन आम दिनों में नहीं पहने जाते हैं. यहां तक कि दूसरों की शादी में भी इस तरह के डिजाइन किए हुए महंगे ड्रेस कोई नहीं पहनता. आज तक का अनुभव ये कहता है कि दूल्हा या दुल्हन अपनी शादी में जो डिजाइनर कपड़े पहनते हैं वो शायद ही दूसरी बार कभी पहने. आज अगर कोई नया शेरवानी और शादी का पूरा सेट बाजार में बनवाए तो कम से कम ₹7000 से लेकर ₹30,000 तक खर्च हो जाता है. दुल्हन का ड्रेस भी इतने में ही मिलता है तो भला सिर्फ दो हजार से लेकर ₹6000 देकर कोई भाड़े पर ही क्यों न ड्रेस ले ले.

ये सब किराये पर है उपलब्ध

दूल्हे के लिए शेरवानी, सूट, साफा, माला, दुपट्टा और मोजड़ी तक का सामान भाड़े पर मिलता है. जबकि दुल्हन के लिए चनिया चोली, लहंगा, माला ऑर्नामेंट समेत पूरा ड्रेस भाड़े पर मिल जाता है. अहमदाबाद में दूल्हे के लिए 300 से अधिक दुकान और दुल्हनों के लिए ढाई सौ से अधिक बुटीक है जो कि दूल्हा दुल्हन के पूरे श्रृंगार को भाड़े पर देती है. एक दुकान पर सालाना 1000 दूल्हा या तो दुल्हन भाड़े पर ड्रेस लेने के लिए आ जाता है और समूचे गुजरात समेत पूरे देश में ऐसा ट्रेंड है.

भाड़े पर ड्रेस लेने का औसत बढ़ा

अहमदाबाद में इन ड्रेस को किराये पर देने का कारोबार करने वाले दुकानदारों का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ निम्न वर्ग के लोग ही पैसे बचाने के लिए भाड़े पर शादी के ड्रेस ले रहे हैं लेकिन मध्यम वर्ग और पढ़े लिखे लोग जो कि ज्यादा खर्च नहीं करते हुए बचे हुए पैसे दूसरी जगह इस्तेमाल करना चाहते हैं, वो भी किराये पर ड्रेस ले रहे हैं. इस साल तो भाड़े पर ड्रेस लेने का औसत 30% बढ़ गया है जो हर साल 15% रहता है.