Geographical indication: वोकल फॉर लोकल और स्थानीय प्रोडक्ट के प्रचार-प्रसार में जीआई टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. आत्मनिर्भर भारत और वोकल पॉर लोकल की वजह से जीआई टैग को काफी बढ़ावा मिल रहा है. इन स्थानीय प्रोडक्ट को देश के साथ ही इंटरनेशनल मार्केट में पहचान दिलाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है. आइए जानते हैं कि GI टैग क्या है और ये क्यों इतने महत्वपूर्ण हैं. साथ ही जानेंगे कि इसे कौन देता है और इंटरनेशनल मार्केट में इसके फायदे क्या हैं? 

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क्या होता है जीआई टैग? 

GI टैग यानि जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग ये एक प्रकार का लेबल होता है, जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है. ऐसा प्रोडक्ट जिसकी विशेषता या फिर नाम खास तौर से प्रकृति और मानवीय कारकों पर निर्भर करती है.

क्यों पड़ी इसकी जरूरत?

डब्ल्यूटीओ से एग्रीमेंट के बाद ये खतरा पैदा हुआ कि दुनिया के तमाम देश भारत पर आर्थिक अतिक्रमण करना शुरू कर रहे हैं. वो यहां के उत्पादों की नकल कर नकली सामानों को बाजार में बेच रहे हैं. इससे भदोही की कालीन, बनारस की साड़ी, लखनऊ की चिकनकारी, कांजीवरम साड़ी पर खतरा पैदा हुआ. जबकि ये सभी हमारी धरोहर और विरासत हैं. ऐसे में इन नकली सामानों से बचाने का जीआई टैग एक मात्र कानूनी हथियार है. इस टैग से उत्पाद को बनाने, प्रोडक्शन करने की गारंटी उसी ज्योग्राफिकल एरिया में होती है. लेकिन सामान पूरी दुनिया में बेचा जाएगा. यही इस कानून की सबसे बड़ी खासियत है.

कब हुई शुरुआत?

जीआई कानून संसद में 2003 में पास हुआ और भारत की विरासत, समृद्धता (prosperity) और पहचान को बचाने और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध करने में कानूनी कवायद है.

देश में कुल कितने जीआई टैग?

देश में सबसे पहले दार्जिलिंग की चाय को जीआई टैग मिला. अब तक करीब 325 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है. यह रोजगार और पुरानी कला को बढ़ावा भी देता है. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि बनारसी साड़ी के लिए 5 जिलों को जियोग्राफिकल जीआई रजिस्ट्री ने लिगल सर्टिफाइड किया है. पांच जिलों के अलावा बनने वाली साड़ी को बनारसी साड़ी नहीं कह सकते हैं. मशीन की साड़ी को जीआई नहीं दिया गया है. हम कह सकते हैं कि जीआई माइग्रेशन को रोकता है और लोकल प्रोडक्ट को बढ़ाता है.

हासिल करने का प्रोसेस

वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्री प्रमोशन एंड इंटर्नल ट्रेड (Department for Promotion of Industry and Internal Trade) की ओर से यह टैग दिया जाता है. इसके लिए चेन्नई स्थित जीआई डेटाबेस में अप्लाई करना पड़ता है. ये इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट के अधीन है. इसकी प्रक्रिया के बारे में बात करें, तो कोई भी उत्पादक संघ या निजी व्यक्ति इसके लिए फाइल नहीं कर सकता. किसी भी इलाके की संस्था, सोसाइटी, कॉपरेटिव, ओएफपीओ (Off Farm Producer Organisation) आदि ही अप्लाई कर सकते हैं. वहीं बाहर की कोई संस्था भी लोकल जीआई के लिए आवेदन नहीं कर सकती है. 

10 वर्षों तक होता है मान्य 

एक बार मिल जाने के बाद 10 वर्षों तक जीआई टैग मान्य होते हैं. इसके बाद उन्हें फिर रिन्यू कराना पड़ता है. भारत में दार्जिलिंग चाय, कश्मीर की पश्मीना, चंदेरी की साड़ी, नागपुर का संतरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल को यह टैग मिला है. वहीं ओडिशा की कंधमाल, गोरखपुर में टेराकोटा के उत्पाद, कश्मीरी का केसर, कांजीवरम की साड़ी, मलिहाबादी आम आदि को भी ये टैग हासिल है.

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