सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वाली ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए प्रावधानों को सख्त कर दिया है. अब Flipkart और Amazon जैसे ऑनलाइन मार्केट प्‍लेटफॉर्म उन कंपनियों के प्रोडक्‍ट्स नहीं बेच पाएंगे जिनमें इनकी हिस्सेदारी है. सरकार ने ऑननलाइन मार्केट का परिचालन करने वाले कंपनियों पर उत्पादों की कीमत प्रभावित कर सकने वाले अनुबंधों की रोक लगा दी है. इससे वे किसी इकाई के साथ उसके किसी उत्पाद को सिर्फ और सिर्फ अपने मंच पर बेचने का अनुबंध नहीं कर सकेंगी.

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वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने ऑनलाइन खुदरा कारोबार में एफडीआई के बारे में संशोधित नीति में कहा है कि इन कंपनियों को अपने सभी वेंडरों को बिना भेदभाव किए एक जैसी सेवाएं एवं सुविधाएं उपलब्ध करानी होंगी. मंत्रालय ने कहा कि संशोधित प्रवधान का लक्ष्य घरेलू कंपनियों को उन ई-कंपनियों से बचाना है जिनके पास FDI के जरिए बड़ी पूंजी उपलब्ध है. संशोधित नीति 1 फरवरी 2019 से प्रभावी हो जाएगी.

कीमतों पर ऐसे लगेगी लगाम

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस कदम से ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कीमतों को प्रभावित करने पर पूरी तरह से लगाम लगेगी. इससे ई-कॉमर्स कंपनियों के मामले में FDI दिशानिर्देशों का बेहतर क्रियान्वयन भी सुनिश्चित होगा. नीति के अनुसार, कोई भी वेंडर अधिकतम 25% प्रोडक्‍ट्स ही किसी एक ऑनलाइन मार्केटप्लेस के जरिए बेच सकेंगे. मंत्रालय ने कहा कि यदि किसी वेंडर के 25% से अधिक प्रोडक्‍ट्स को किसी एक ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की कंपनी द्वारा खरीदा जाता है तो उक्त वेंडर के भंडार (इंवेंटरी) को संबंधित ई-कॉमर्स कंपनी द्वारा नियंत्रित माना जाएगा.

इन कंपनियों के प्रोडक्‍ट्स नहीं बेच सकेंगी ऑनलाइन ई-कॉमर्स कंपनियां

मंत्रालय ने कहा कि ऐसी कोई भी इकाई जिनके ऊपर ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी का नियंत्रण हो या उनके भंडार में ई-कॉमर्स कंपनी या उसके समूह की किसी कंपनी की हिस्सेदारी हो तो वह इकाई संबंधित ऑनलाइन मार्केटप्लेस (मंच) के जरिए अपने प्रोडक्‍ट्स की बिक्री नहीं कर सकेंगी. अधिसूचना में कहा गया कि ई्-कॉमर्स कंपनी किसी भी बिक्रेता को अपना कोई प्रोडक्‍ट सिर्फ अपने मंच के जरिए बेचने के लिये बाध्य नहीं कर सकती हैं.

बिना भेदभाव के खरीदारों को मिलनी चाहिए सुविधाएं

ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष या साझी हिस्सेदारी वाले वेंडरों को दी जाने वाली लॉजिस्टिक्‍य जैसी अन्य सेवाएं उचित तथा बगैर भेदभव के होनी चाहिए. इन सेवाओं में लॉजिस्टिक्स, वेयरहाउसिंग, विज्ञापन, मार्केटिंग, पेमेंट तथा फाइनेंस आदि शामिल हैं. मंत्रालय ने एक अधिसूचना में कहा है कि मार्केटप्लेस की समूह कंपनियों द्वारा खरीदारों को दिए जाने वाले कैशबैक भेदभाव से रहित तथा उचित होने चाहिए. अधिसूचना में यह भी कहा गया कि इन कंपनियों को हर साल 30 सितंबर तक पिछले वित्त वर्ष के लिये दिशानिर्देशों के अनुपालन की पुष्टि को लेकर विधिवत नियुक्त अपने लेखा-परीक्षक की रिपोर्ट के साथ एक प्रमाण-पत्र रिजर्व बैंक के पास जमा कराना होगा.

क्‍यों लिया गया यह निर्णय

मंत्रालय ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा उपभोक्ताओं को भारी छूट दिए जाने के खिलाफ घरेलू कारोबारियों की आपत्तियों के मद्देनजर ये निर्णय लिए हैं. सरकार ने ई-कॉमर्स प्‍लेटफॉर्म का परिचालन करने वाली कंपनियों में शत-प्रतिशत विदेशी हिस्सेदारी की छूट दे रखी है पर वे माल की इनवेंट्री (खुद का स्टॉक) बना कर उसकी बिक्री अपने मंच पर नियमत: नहीं कर सकतीं है.

ई-कॉमर्स कंपनियों की रही मिलीजुली प्रतिक्रिया

स्नैपडील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कुनाल बहल ने संशोधित नीति का स्वागत करते हुए ट्वीट किया कि मार्केटप्लेस ईमानदार एवं स्वतंत्र बिक्रेताओं के लिए है जिनमें से अधिकांश MSME हैं. ये बदलाव सभी बिक्रेताओं को बराबर मौके देंगे तथा उन्हें ई-कॉमर्स की पहुंच का फायदा उठाने में मदद मिलेगी. अमेजॉन इंडिया के प्रवक्ता ने कहा कि हम सर्कुलर का अभी अध्‍ययन कर रहे हैं. एक अन्य ई-कॉमर्स कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस बदलाव से निवेश पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

कैट ने किया इस नीति का स्‍वागत

खुदरा कारोबारियों के संगठन कैट ने कहा कि यदि इन बदलावों का ईमानदारी से क्रियान्वयन किया गया तो कुप्रथाएं और कीमतों को प्रभावित करने वाले कदम तथा ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा दी जाने वाली अतिरिक्त छूट आदि इतिहास की चीजें हो जाएंगी. कैट ने ई-कॉमर्स नीति लाने तथा क्षेत्र पर निगरानी के लिये एक नियामक बनाने की भी मांग की.