नई दिल्ली : केन्द्र सरकार कर्जदाताओं के साथ बिजली क्षेत्र की दबाव में आई परियोजनाओं के समाधान को लेकर ‘परिवर्तन’योजना पर बातचीत करेगी. यह बातचीत पावर फाइनेंस कारपारेशन (पीएफसी) सहित विभिन्न कर्जदाताओं के साथ होगी. इस योजना के तहत सरकार दबाव में फंसी ऐसी परियोजनाओं को संभालने के लिए किसी संपत्ति प्रबंधन कंपनी सौंपने का विचार है ताकि उनके मूल्य की रक्षा की जा सके. 

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परिवर्तन योजना यानी वेयरहाउसिंग (भंडारण) एवं पुनर्वास के जरिये विद्युत संपत्तियों का पुनरूत्थान (परिवर्तन) योजना के तहत करीब 25,000 मेगावाट की कर्ज में फंसी विद्युत योजनाओं को एक संपत्ति प्रबंधन कंपनी (एएमसी) के तहत रखा जायेगा. ऐसा करने से इन परियेाजनाओं के मूल्य की रक्षा की जा सकेगी और उनकी फौरी बिक्री को रोका जा सकेगा. 

विद्युत सचिव ए.के. भल्ला ने यहां कहा, इस योजना में कुछ मुद्दे हैं जिन पर विचार विमर्श करने की जरूरत है. भल्ला बुधवार को यहां भारत ऊर्जा मंच द्वारा आयोजित कोयला सम्मेलन के मौके पर अलग से संवाददाताओं से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा, इस मामले में कुछ रियायतों की बात है जो कि रिजर्व बैंक से दिये जाने की जरूरत है. इसमें दबाव में फंसी संपत्तियों का पहले मूल्यांकन जरूरी है. आधिकारिक सूत्रों के अनुसार बिजली मंत्री आर.के. सिंह बैठक की अध्यक्षता करेंगे.

संसद की एक समिति ने भी हाल ही में विद्युत क्षेत्र में दबाव वाली संपत्तियों के समाधान के लिये एक नया रूपरेखा ढांचा बनाये जाने की जरूरत बताई है. समिति ने कहा है कि इस संबंध में रिजर्व बैंक ने फरवरी जो रूपरेखा ढांचा दिया है उसमें केवल वित्तीय मुद्दों को ही देखा गया है जबकि इसमें विद्युत क्षेत्र से जुड़े तमाम मुद्दों को नजरंदाज किया गया है. 

रिजर्व बैंक ने कर्ज समय पर नहीं लौटाने को लेकर कड़ी समयसीमा की शर्त रखी है जिसके बाद ऐसे कर्ज में दिवाला प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. रिजर्व बैंक ने समयसीमा बीतने के बाद एक दिन की देरी होने पर भी ऐसे कर्ज को डिफाल्ट मानने को कहा है. 

बैंकों से कहा गया है कि कर्ज डिफाल्ट मान लिये जाने के बाद 180 दिन में उसका समाधान करें. इसमें 2,000 करोड़ रुपये अथवा इससे अधिक के कर्ज को रखा गया है. केन्द्र सरकार ने हालांकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इस महीने इस समयसीमा को और 180 दिन बढ़ाने की सिफारिश की थी. 

इनपुट एजेंसी से