'राजशाही सिल्क' की चमक बढ़ाने के लिए बांग्लादेश ने बनाई नई योजना
1990 और 2000 के दशक में बांग्लादेश का रेशम उद्योग काफी प्रभावित हुआ. अधिकारी इसके लिये गलत सरकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हैं.
बांग्लादेश का रेशम उद्योग दुनिया के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है. देश के पश्चिमोत्तर सीमावर्ती जिले राजशाही के किसानों द्वारा रेशम के धागों से निर्मित उत्पाद की सबसे अधिक मांग भी रहती है. इन किसानों को अच्छी क्वालिटी वाले शहतूती रेशम में महारत है. रेशम का यह किस्म ‘बंगाल या राजशाही’ सिल्क के नाम से जाना जाता है. इसका उत्पादन शहतूत के ताजे पत्तों को खाकर लार्वा उत्पन्न वाले रेशम के कीटों से होता है और इनसे बेशकीमती शानदार कपड़े बनाये जाते हैं.
करीब 40 दिन बाद ये कीट अपने शरीर के आस-पास सलाइवा छिड़ककर कोकून का निर्माण करते हैं, जिसे बांस के फ्रेम में रख दिया जाता है और आखिर में इसे निकाल लिया जाता है. कोकून को गर्म पानी में उबाला जाता है जिससे इसके अंदर मौजूद कीट मर जाते हैं और बेहद महीन धागे इनसे अलग हो जाते हैं जिन्हें बड़े आकार वाले बॉबीन में लपेट कर सुखाया जाता है.
बांग्लादेश में प्रमुख रेशम उत्पादकों में से एक सोपुरा रेशम फैक्ट्री में सुपरवाइजर अखी अक्तर ने बताया कि हर कोकून में करीब 500 मीटर (1,600 फुट) महीन रेशे होते हैं. सूखे धागों को फिर मिल भेजा जाता है, जहां कर्मचारी कई धागों को एकसाथ मिलाते हैं और वस्त्र निर्माण के लिये उनसे सूत कातते हैं. इस सामग्री को फिर उबाला, धोया और उसकी वैक्सिंग की जाती है. तब जाकर उन्हें साड़ियों, दुपट्टों और कुर्तों के निर्माण के लिये टेलर के पास भेजा जाता है.
1990 और 2000 के दशक में बांग्लादेश का रेशम उद्योग काफी प्रभावित हुआ. हालांकि अधिकारी इसके लिये गलत सरकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हैं. लेकिन अब देश ने उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिये कई लाख डॉलर वाली योजना शुरू की है और लाखों नए रोजगार का सृजन किया है.
देश के रेशम विकास बोर्ड के प्रमुख अब्दुल हाकिम ने एएफपी को बताया, ‘‘अगर हम इसे उचित तरीके से विकसित करें तो रेशम उत्पादन में असीम संभावनाएं हैं.’’