RBI Risk Weight: केंद्रीय रिजर्व बैंक की ओर से बैंकों के लोन रिस्क वेटेज बढ़ाने को लेकर फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स बैंकों की सेहत के लिए अच्छे कदम के तौर पर देख रहे हैं. हां, इससे कर्ज की ब्याज दरें बढ़ेंगी, लेकिन इससे असेट क्वालिटी में सुधार आने की संभावना है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी S&P ने RBI की ओर से उठाए कदम को सही और जरूरी बताया है. 

क्या कहना है S&P का?

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S&P का कहना है कि RBI के कदम का असर NBFCs (गैर-वित्तीय बैंकिंग संस्थाएं) पर ज्यादा असर होगा. इससे बैंकों के कैपिटल adequecy में 60 bps की कमी का अनुमान है. हां, लोन की दरों में बढ़त होगी. क्रेडिट ग्रोथ में कमी होगी, इससे मुनाफे पर असर होगा. एजेंसी का कहना है कि कमजोर कंपनियों को पैसे जुटाने की जरूरत पड़ेगी. NBFCs के Borrowing Cost में बढ़ोतरी होगी, लेकिन ज्यादा रिस्क वेट के चलते एसेट क्वालिटी को सहारा मिलेगा. ऐसे में आरबीआई की ओर से लंबी अवधि के लिए कदम अच्छा है. इससे उनकी बैलेंस शीट मजबूत होगी. एजेंसी ने भारत के फाइनेंशियल सेक्टर के आउटलुक में कोई बदलाव नहीं किया है.

आरबीआई पिछले कुछ टाइम में रिटल लोन को लेकर थोड़ा सख्त हुआ है, ऐसे में बैंकों की ओर से अनसिक्योर्ड लोन पर खुले हाथ से मिलती मंजूरी को देखकर उसे लगा कि यहां थोड़े कंट्रोल की जरूरत है, इसलिए उसने रिस्क वेटेज बढ़ाने का फैसला किया है. रिस्क वेटेज बढ़ने से बैंक को ज्यादा कैपिटल की जरूरत होगी और उनकी कॉस्टिंग बढ़ेगी, तो ऑब्वियस है कि बैंक बढ़ी हुई कॉस्टिंग बैंक कंज्यूमर के ऊपर पास ऑन कर देते हैं. तो इसतरह आपके पर्सनल लोन का इंटरेस्ट रेट बढ़ जाएगा. जरूरी बात ध्यान में रखने की ये है कि इस फैसले का असर नए लोन पर तो होगा ही, जो पुराने लोन कंज्यूमर्स ने ले रखे हैं, उनके लोन पर भी ब्याज महंगा होगा.