सरकारी बैंकों की फाइनेंशियल कंडीशन में सुधार के संकेत, जानें किस कारण हो रहा बदलाव
फंसे कर्ज के एवज में की गई प्रावधान राशि का अनुपात (पीसीआर) सितंबर 2018 में बढ़कर 66.85 प्रतिशत पर पहुंच गया जो कि 2015 में 50 प्रतिशत से भी कम था.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में फंसे कर्ज के एवज में की गई प्रावधान राशि का अनुपात (पीसीआर) सितंबर 2018 में बढ़कर 66.85 प्रतिशत पर पहुंच गया जो कि 2015 में 50 प्रतिशत से भी कम था. एक अधिकारी ने कहा कि यह बैंकों की वित्तीय स्थिति में सुधार को दर्शाता है. पीसीआर फंसे कर्ज के एवज में प्रावधान को प्रतिबिंबित करता है. यह बताता है कि फंसे कर्ज के एवज में प्रावधान उत्पन्न लाभ के माध्यम से किया गया है. अधिक फंसे कर्ज के समक्ष अधिक राशि का प्रावधान (पीसीआर) होने का मतलब है कि फंसा कर्ज अपेक्षाकृत सुरक्षित है.
बैंकों का पीसीआर बढ़ा
वित्तीय सेवा सचिव राजीव कुमार ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का पीसीआर मार्च 2015 में 46.04 प्रतिशत था जो सितंबर 2018 में बढ़कर 66.85 प्रतिशत पर पहुंच गया. इससे बैंकों को संभावित नुकसान से निपटने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि इसके अलावा सरकार के विभिन्न उपायों के भी अच्छे परिणाम रहे हैं. इससे बैंकों का फंसा कर्ज 23,000 करोड़ रुपये से अधिक घटा है जो मार्च 2018 में 9.62 लाख करोड़ रुपये के उच्च स्तर पर पहुंच गया.
एनपीए मार्च 2018 से नीचे आनी शुरू हुई
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) मार्च 2018 में चोटी पर पहुंचने के बाद नीचे आनी शुरू हो गई है. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसमें 23,860 करोड़ रुपये की कमी आई है. कुमार ने कहा कि फंसे कर्ज के समक्ष किये गए जरूरी प्रावधान में लगातार वृद्धि होना इस बात का भी संकेत देता है कि एनपीए के लिये पर्याप्त प्रावधान और अनुशासन का पालन किया गया है. उन्होंने कहा कि सरकार ने भी पर्याप्त पूंजी समर्थन से इसे सहारा दिया है.
(फाइल फोटो)
सरकारी बैंकों को दी जा रही मदद
इस महीने की शुरुआत में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 41,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त पूंजी डालेगी. यह पूर्व में घोषित पूंजी डालने की योजना के अलावा है. सरकारी बैंकों में चालू वित्त वर्ष में कुल 1.06 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली जाएगी जो पहले 65,000 करोड़ रुपये थी. जेटली के अनुसार इससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ेगी और उन्हें रिजर्व बैंक के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीबी) से बाहर निकलने में मदद मिलेगी. पीसीबी के कारण बैंकों पर कामकाज संबंधी कुछ पाबंदियां लगा दी जाती हैं.
(इनपुट एजेंसी से)