देश का सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपने ग्राहकों को नई सुविधा देने का ऐलान कर दिया है. आरबीआई के फैसले के बाद SBI ने होम और ऑटो लोन पर लगने वाले ब्याज की व्यवस्था को बदल दिया है. अब आरबीआई के रेपो रेट (ब्याज दरें) घटाने के तुरंत बाद बैंक अपनी इसका फायदा ग्राहकों को देंगे. बैंकों से लिए गए लोन की ब्याज दरें भी खुद कम हो जाएंगी. आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने अपनी पॉलिसी में यह नियम बदलने का फैसला लिया था. 1 अप्रैल के बाद से यह नियम लागू होने जा रहा है. लेकिन, बैंक ग्राहकों को इसका फायदा मई से देंगे.

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1 मई से लागू होगा नियम

नए फॉर्मूले से ब्याज दर तय करने वाला SBI इकलौता बैंक है, जिसने एक मई से यह व्यवस्था लागू करने का ऐलान किया है. SBI ने बुधवार देर शाम एक बयान में कहा कि नई दरें एक मई से प्रभावी होंगी. इस कदम से रिजर्व बैंक के नीतिगत दर (रेपो रेट) में कटौती का फायदा तत्काल प्रभाव से ग्राहकों को मिलेगा. रिजर्व बैंक बार-बार कहता रहा है कि वह जितनी रिपो रेट में कटौती करता है, बैंक उतना लाभ अपने ग्राहकों को नहीं देते.

किन्हें मिलेगा फायदा

रिजर्व बैंक ने मौद्रिक समीक्षा की बैठक में रेपो रेट 0.25 बेसिस प्वाइंट घटाकर 6.50 फीसदी से 6.25 फीसदी कर दिया है. एसबीआई ने कम अवधि के लोन, एक लाख रुपए से अधिक के डिपॉजिट, एक लाख रुपए से अधिक के सभी कैश क्रेडिट अकाउंट्स और ओवरड्राफ्ट को रेपो दर से जोड़ने का फैसला किया है.

ग्राहकों को कैसे मिलेगा फायदा

  • बैंक के इस कदम से सभी जमाकर्ताओं को लाभ नहीं होगा, क्योंकि नई दर उन्हीं खातों पर लागू होगी, जिनके खातों में एक लाख रुपए से अधिक राशि होगी.
  • रेपो रेट इस समय 6.25 प्रतिशत है. केंद्रीय बैंक ने अपनी पिछली मौद्रिक नीति में सात फरवरी को रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की थी.
  • बैंक ने कहा कि वह एक लाख रुपये से अधिक के जमा पर ब्याज को रेपो रेट से जुड़ेगा. फिलहाल, इस पर ब्याज 3.5 प्रतिशत है, जो मौजूदा रेपो दर से 2.75 प्रतिशत कम है. 
  • बैंक ने सभी नकद कर्ज खातों और एक लाख रुपए से अधिक की ओवरड्राफ्ट सीमा वाले खातों को भी रेपो रेट जमा 2.25 प्रतिशत की दर से जोड़ दिया है.

क्या है आरबीआई का फैसला?

भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्ज लेने वालों के लिए विभिन्‍न कैटेगरी की फ्लोटिंग ब्‍याज दरें अब एक्‍सटर्नल बेंचमार्क से लिंक्‍ड होंगी. RBI ने MCLR को एक्‍सटर्नल बेंचमार्क से रिप्‍लेस करने का प्रस्‍ताव किया है. RBI ने डेवलपमेंट एंड रेगुलेटरी पॉलिसीज के अपने बयान में प्रस्‍ताव किया है कि 1 अप्रैल 2019 से बैंक मौजूदा इंटरनल बेंचमार्क सिस्‍टम जैसे प्राइम लेंडिंग रेट, बेस रेट, मार्जिनल कॉस्‍ट ऑफ फंड बेस्‍ड लेंडिंग रेट (MCLR) की जगह एक्‍सटर्नल बेंचमार्क्‍स का इस्‍तेमाल करेंगे.

क्या होता है रेपो रेट?

रेपो रेट वह दर होती है, जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है. दरअसल जब भी बैंकों के पास फंड की कमी होती है, तो वे इसकी भरपाई करने के लिए केंद्रीय बैंक यानी आरबीआई से पैसे लेते हैं. आरबीआई की तरफ से दिया जाने वाला यह लोन एक फिक्स्ड रेट पर मिलता है. यही रेट रेपो रेट कहलाता है. इसे भारतीय रिजर्व बैंक हर तिमाही के आधार पर तय करता है. रेपो रेट कम हाने के बाद ही बैंक भी अपनी ब्याज दरें तय करते हैं.

क्या होता है रिवर्स रेपो रेट?

जिस रेट पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं. रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी को नियंत्रित करने में काम आती है. बहुत ज्यादा नकदी होने पर आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है.