भारतीय रिजर्व बैंक ने शनिवार को कहा कि दबाव वाली संकटग्रस्त संपत्तियों की पहचान और उनके समाधान पर 12 फरवरी को जारी परिपत्र को लेकर उसके रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. केंद्रीय बैंक ने बयान में दोहराया कि रिजर्व बैंक रूपरेखा के सभी पहलुओं पर अपने पुराने रुख पर कायम है क्योंकि उसके पत्राचार में इसे लेकर बार-बार स्पष्ट किया गया है. इसमें मौद्रिक नीति की बैठक के बाद 7 फरवरी 2019 को हुए संवाददाता सम्मेलन में दिया गया स्पष्टीकरण भी शामिल है.

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मामला न्यायालय में विचाराधीन

यह बयान ऐसे समय आया है जब खबरें आ रही थी कि रिजर्व बैंक सरकार के ही रुख पर चल सकता है और संकटग्रस्त परिसंपत्तियां के समाधान को लेकर 12 फरवरी को जो संशोधित रूपरेखा जारी की गई थी उसके कुछ पहलुओं पर छूट देने पर विचार कर रहा है. आरबीआई ने कहा कि चूंकि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है और उच्चतम न्यायालय ने मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया है. इसलिए रिजर्व बैंक विशेष विवरणों में कोई टिप्पणी नहीं करेगा. उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने कहा था कि परिपत्र में कोई बदलाव नहीं होगा. 

सर्कुलर में क्या है

आरबीआई के 12 फरवरी 2018 को जारी परिपत्र में ऋणदाताओं को निर्देश दिया गया है कि 2,000 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज वाले खातों में समय पर किस्त, ब्याज चुकाने में असफल रहने वाले मामले के 180 दिनों के भीतर समाधान नहीं होने पर तुरंत ऐसे मामलों को दिवाला प्रक्रिया के लिए भेजना होगा. 

रिजर्व बैंक ने 12 फरवरी 2018 को जारी परिपत्र में पुनर्गठन की पुरानी योजनाओं को खत्म कर दिया. 

परिपत्र के तहत आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया था कि यदि कोई कंपनी ऋण पुनर्भुगतान में एक दिन की भी देरी करे तो उसे डिफाल्टर के रूप में देखना चाहिए. हालांकि, रिजर्व बैंक के इस नियम को काफी सख्त बताया गया है और संसदीय समिति सहित कई मंचों पर इसकी आलोचना की गई.