RBI Monetary Policy: साल 2024 की पहली मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक का आज आखिरी दिन है. इस बैठक के जरिए आरबीआई (RBI) की छह सदस्‍यीय टीम महंगाई के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीतिगत रेपो रेट में बदलाव को लेकर चर्चा करती है. मीटिंग के तीसरे दिन आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (RBI Governor Shaktikanta Das) परिणामों की घोषणा करते हैं. इस बीच रेपो रेट में भी बदलाव किए जाते हैं. आरबीआई जरूरत के अनुसार समय-समय पर रेपो रेट घटाता और बढ़ाता है. हालांकि आरबीआई ने काफी समय से रेपो रेट को स्थिर रखा है.

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आखिरी बार 8 फरवरी, 2023 को रेपो दर को 25 बे‍सिस पॉइंट बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया था, तब से अब तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है. उम्‍मीद की जा रही है कि इस बार भी आरबीआई रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करेगा. बता दें कि जब भी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (Reserve Bank of India- RBI) रेपो रेट बढ़ाता है तो इसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है. आइए आपको बताते हैं कि क्‍या होता है रेपो रेट (Repo Rate), सीआरआर (CRR) और रिजर्व रेपो (Reserve Repo Rate) और ये आम आदमी पर कैसे असर डालता है.

क्‍या होता है Repo Rate

जिस तरह आप अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं और उसे एक निर्धारित ब्‍याज के साथ चुकाते हैं, उसी तरह सार्वजनिक, निजी और व्‍यावसायिक क्षेत्र की बैंकों को भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ही ओर से जिस ब्‍याज दर पर बैंकों को लोन दिया जाता है, उसे रेपो रेट कहा जाता है. रेपो रेट कम होने पर आम आदमी को राहत मिल जाती है और रेपो रेट बढ़ने पर आम आदमी के लिए भी मुश्किलें बढ़ती हैं.

रेपो रेट बढ़ने से महंगे होते हैं लोन

रेपो रेट एक तरह का बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर अन्‍य बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले लोन के इंटरेस्‍ट रेट को निर्धारित करते हैं. जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों को कर्ज ज्‍यादा ब्‍याज दर पर मिलता है. ऐसे में बैंक आम आदमी के लिए भी होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की ब्‍याज दर को बढ़ा देती हैं और इसका असर ईएमआई पर पड़ता है. यानी रेपो रेट बढ़ने के साथ ईएमआई भी बढ़ जाती है. 

क्‍या होता है Reverse Repo Rate

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, कॉमर्शियल बैंकों के सरप्लस मनी को अपने पास जमा कर लेता है. बदले में आरबीआई (RBI) इन बैंकों को ब्याज देता है. यही रिवर्स रेपो रेट कहलाता है. जब मार्केट में कैश की उपलब्धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है. ऐसे में आरबीआई रिवर्स रेपो रेट की दर बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए आरबीआई के पास अमाउंट जमा करा दे.

आप पर कैसे असर डालता है रिवर्स रेपो

बाजार में कैश लिक्विडिटी को नियंत्रित रखने के लिए आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है. जब बाजार में नकदी की उपलब्‍धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने की भी संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में आईबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बैंक ब्‍याज कमाने के चक्‍कर में अपनी रकम को आरबीआई के पास जमा करा दें. इस तरह बैंकों के पास बाजार में बांटने के लिए कम रकम रह जाती है. 

क्‍या होता है CRR

सीआरआर यानी कैश रिजर्व रेश्‍यो (Cash Reserve Ratio-CRR). सभी बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का निश्चित हिस्‍सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है. इसे CRR कहते हैं. ये बाजार में नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण रखने का एक टूल है और बैंक की स्थायित्व और जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है. आरबीआई के पास रखा गया नकद रिजर्व ये सुनिश्चित करता है कि बैंक अपने ग्राहकों की मांगों को पूरा करने के लिए नकदी की कमी से न जूझें.

सीआरआर का आप पर क्या असर पड़ता है? 

अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. जब बैंक पूंजी का बड़ा हिस्‍सा आबीआई के पास रख देंगे तो बैंकों के पास ग्राहकों को कर्ज देने के लिए कम रकम रह जाएगी.  यानी आम आदमी को लोन देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा. अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है. हालांकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव से बाजार में नकदी की लिक्विडिटी पर जल्‍दी असर पड़ता है, जबकि सीआरआर में किए गए बदलाव से नकदी की उपलब्धता पर काफी समय बाद असर पड़ता है. इसलिए आरबीआई सीआरआर में तभी बदलाव करता है, जब उसे नकदी की लिक्विडिटी पर तुरंत असर न डालना हो.