सरपट दौड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था; RBI गवर्नर बोले - वैश्विक उथल-पुथल से चिंताएं बरकरार
आरबीआई के हालिया मासिक बुलेटिन में कहा, "मुद्रास्फीति में गिरावट आ रही है, हालांकि हमें अभी भी काफी दूरी तय करनी है. बाहरी क्षेत्र अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है. विदेशी मुद्रा भंडार नए शिखर छू रहा है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने जोर देकर कहा है कि तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता और मजबूती से वे आत्मसंतुष्ट नहीं हैं. उनके अनुसार, मुद्रास्फीति और विकास के बीच संतुलन अच्छा है और भारत अपने विकास पथ पर अग्रसर है. उन्होंने आरबीआई के हालिया मासिक बुलेटिन में कहा, "मुद्रास्फीति में गिरावट आ रही है, हालांकि हमें अभी भी काफी दूरी तय करनी है. बाहरी क्षेत्र अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है. विदेशी मुद्रा भंडार नए शिखर छू रहा है. राजकोषीय समेकन का काम चल रहा है. वित्तीय क्षेत्र मजबूत और लचीला बना हुआ है.
महंगाई के लक्ष्य पर फोकस
गवर्नर ने आगे कहा कि भारत की संभावनाओं के बारे में वैश्विक निवेशकों का आशावाद शायद अब तक के उच्चतम स्तर पर है. उन्होंने कहा, "हालांकि, तेजी से बदलती वैश्विक परिस्थितियों के बीच हम आत्मसंतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने आगे कहा कि हम मुद्रास्फीति को लक्ष्य के साथ स्थायी रूप से जोड़ने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
केंद्रीय बैंक के अनुसार, प्राइवेट फाइनल कंज्प्शन एक्सपेंडिचर (पीएफसीई), जो समग्र मांग का मुख्य आधार है, में जबरदस्त उछाल आया है. पीएफसीई वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 7.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा है और इसका समग्र जीडीपी वृद्धि में 4.2 प्रतिशत अंकों का योगदान रहा है.
ग्रामीण मांग में तेजी
आरबीआई के अनुसार, "ग्रामीण मांग में धीरे-धीरे वृद्धि देखी जा रही है. अप्रैल-अगस्त 2024 में मोटरसाइकिल की बिक्री में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई, जबकि जून-जुलाई 2024 में ट्रैक्टर की बिक्री में वृद्धि हुई. इसके अलावा, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) के तहत काम की मांग वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में 16.6 प्रतिशत घटी, जो कृषि क्षेत्र में रोजगार में सुधार को दर्शाती है.
आरबीआई के दस्तावेज में जोर दिया गया है कि "ग्रामीण क्षेत्रों में एफएमसीजी (फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स) को लेकर खर्च में बढ़ोतरी हुई है, जो कि ग्रामीण मांग को लेकर एक अच्छा संकेत है. दक्षिण-पश्चिम मानसून में सामान्य से अधिक वर्षा, खरीफ की बुवाई में बढ़ोतरी, जलाशयों के बेहतर स्तर और कृषि को लेकर सकारात्मक दृष्टिकोण ग्रामीण मांग में सुधार को बनाए रखने के संकेत हैं. इसमें कहा गया है कि घरेलू विकास ने अपनी गति बरकरार रखी है तथा निजी उपभोग और निवेश में भी समान वृद्धि हुई है.