RBI Monetary Policy: FY2024-25 के लिए मौद्रिक नीति समिति की दूसरी बैठक का आज तीसरा दिन है. सुबह 10 बजे आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास  (RBI Governor Shaktikanta Das) तीन दिवसीय बैठक में लिए गए फैसलों की घोषणा करेंगे. ऐसे में हर किसी को इंतजार इस बात का है कि क्‍या आरबीआई इस बार रेपो रेट में किसी तरह का बदलाव करेगा? फरवरी, 2023 से रेपो दर 6.5 प्रतिशत के उच्चस्तर पर बना हुआ है. एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि इस बार भी रेपो रेट में बदलाव होने की संभावना नहीं है.

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 रेपो रेट बढ़ने-घटने का सीधा असर आम आदमी पर पड़ता है. इससे उसकी लोन की ईएमआई घटती-बढ़ती है. हालांकि इस बार RBI रेपो रेट को लेकर क्‍या फैसला लेता है ये तो  बैठक के नतीजों के बाद ही पता चलेगा. लेकिन तब तक आप ये समझ लीजिए कि आखिर  Repo Rate, CRR और Reverse Repo होता क्‍या है और ये कैसे आपकी ईएमआई पर असर डालता है.

पहले समझिए क्‍या होती है EMI

EMI यानी समान मासिक किस्त (Equated Monthly Installment- EMI) एक ऐसी सुविधा है जो किसी बैंक या वित्‍तीय संस्‍थान से लोन चुकाने के लिए मिलती है. सरल शब्‍दों में समझें तो जब भी हम अपनी किसी जरूरत के लिए होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन आदि किसी भी तरह का ऋण बैंक या किसी वित्‍तीय संस्‍थान से लेते हैं तो बैंक या वो वित्‍तीय संस्‍थान, उस लोन को विशेष ब्‍याज दरों के साथ तय समय सीमा के अंदर किस्‍तों में चुकाने की अनुमति देते हैं. ग्राहक को निश्चित तिथि पर मासिक किस्‍त के रूप में तय की गई रकम का भुगतान करना होता है. इसे ही ईएमआई कहते हैं.

कैसे तय होती है ईएमआई

ईएमआई को एक फॉर्मूले के तहत तैयार किया जाता है. फॉर्मूला है EMI = [P x (R/100) x (1+R/100) ^n] / [(1+R/100)^ n-1].

यहां P= प्रिंसिपल लोन अमाउंट, R= प्रतिमाह ब्याज दर, n= मासिक किस्तों की संख्या.

इस कैलकुलेशन को ऐसे समझें

मान लीजिए 30 लाख रुपए का होम लोन लेना है, 15 साल तक किस्त जाएगी और सालाना ब्याज दर 9 फीसदी है. ब्याज दर को हर महीने के आधार पर कन्वर्ट करने पर यह 0.75 फीसदी हर महीने होगी. इनके आधार पर MS Excel फॉर्मूले से आपकी होम लोन EMI की कैलकुलेशन इस तरह होगी- EMI = [3000000 x (.75/100) x (1+.75/100) ^180] / [(1+.75/100)^180-1] = Rs 30,428.

क्‍या होता है रेपो रेट?

जिस तरह आप अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए बैंक से कर्ज लेते हैं और उसे एक निर्धारित ब्‍याज के साथ चुकाते हैं, उसी तरह सार्वजनिक, निजी और व्‍यावसायिक क्षेत्र की बैंकों को भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लोन लेने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ही ओर से जिस ब्‍याज दर पर बैंकों को लोन दिया जाता है, उसे रेपो रेट (Repo Rate) कहा जाता है. रेपो रेट कम होने पर आम आदमी को राहत मिल जाती है और रेपो रेट बढ़ने पर आम आदमी के लिए भी मुश्किलें बढ़ती हैं.

रेपो रेट बढ़ने और घटने का EMI पर कैसे होता है असर?

रेपो रेट एक तरह का बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर अन्‍य बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले लोन के इंटरेस्‍ट रेट को निर्धारित करते हैं. जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों को कर्ज ज्‍यादा ब्‍याज दर पर मिलता है. ऐसे में बैंक आम आदमी के लिए भी होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की ब्‍याज दर को बढ़ा देते हैं. ब्‍याज दरें बढ़ने का सीधा असर आम लोगों की EMI पर पड़ता है और उनकी ईएमआई बढ़ जाती है. वहीं जब रेपो रेट कम किया जाता है तो आम लोगों को भी लोन कम ब्‍याज दर पर मिलते हैं और उनकी EMI भी कम होती है.

क्‍या होता है रिवर्स रेपो?

रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) वह दर है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक, कॉमर्शियल बैंकों के सरप्लस मनी को अपने पास जमा कर लेता है. बदले में आरबीआई (RBI) इन बैंकों को ब्याज देता है. यही रिवर्स रेपो रेट कहलाता है. 

आप पर कैसे असर डालता है रिवर्स रेपो

जब बाजार में नकदी की उपलब्‍धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने की भी संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में आईबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बैंक ब्‍याज कमाने के चक्‍कर में अपनी रकम को आरबीआई के पास जमा करा दें. बैंकों के पास बाजार में बांटने के लिए कम रकम रह जाती है. 

क्‍या होता है CRR ?

सीआरआर यानी कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio-CRR). सभी बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का निश्चित हिस्‍सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखना पड़ता है. इसे CRR कहते हैं. ये बाजार में नकदी के प्रवाह पर नियंत्रण रखने का एक टूल है और बैंक की स्थायित्व और जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है. आरबीआई के पास रखा गया नकद रिजर्व ये सुनिश्चित करता है कि बैंक अपने ग्राहकों की मांगों को पूरा करने के लिए नकदी की कमी से न जूझें.

CRR का आप पर क्या असर पड़ता है? 

अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना होता है. जब बैंक पूंजी का बड़ा हिस्‍सा आबीआई के पास रख देंगे तो बैंकों के पास ग्राहकों को कर्ज देने के लिए कम रकम रह जाएगी. अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है. हालांकि रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव से बाजार में नकदी की लिक्विडिटी पर जल्‍दी असर पड़ता है, जबकि सीआरआर में किए गए बदलाव से नकदी की उपलब्धता पर काफी समय बाद असर पड़ता है. इसलिए आरबीआई सीआरआर में तभी बदलाव करता है, जब उसे नकदी की लिक्विडिटी पर तुरंत असर न डालना हो.