RBI Dividend: पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का सरकार को रिकॉर्ड 2.11 लाख करोड़ करोड़ रुपये का डिविडेंड देने का कारण संभवत: अधिक लाभ का होना है. हालांकि, इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार इसका उपयोग किस सीमा तक उधारी कम करने या व्यय बढ़ाने के लिए करती है. उल्लेखनीय है कि आरबीआई के केंद्रीय निदेशक मंडल की पिछले सप्ताह 608वीं बैठक में वित्त वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये के डिविडेंड भुगतान को मंजूरी दी है. 

अभी तक का सबसे अधिक डिविडेंड

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यह केंद्रीय बैंक की ओर से अबतक का सर्वाधिक लाभांश भुगतान होगा. यह चालू वित्त वर्ष के बजट अनुमान की तुलना में दोगुना से भी अधिक है. अंतरिम बजट में सरकार ने आरबीआई और सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों से कुल 1.02 लाख करोड़ रुपये की लाभांश आय का अनुमान जताया था. केंद्रीय बैंक ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 87,416 करोड़ रुपये का लाभांश सरकार को दिया था. 

आरबीआई क्यों कर रहा है डिविडेंड का भुगतान

गर्ग ने कहा, "आरबीआई के अत्यधिक लाभांश का सबसे स्पष्ट कारण बड़ा मुनाफा हो सकता है. हालांकि, अभी आरबीआई की ‘बैलेंस शीट’ प्रकाशित नहीं हुई है, लेकिन इसके लगभग तीन लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है. साथ ही, यह शक्तिकांत दास का आरबीआई गवर्नर पद पर आखिरी साल है और देश में चुनाव भी हो रहे हैं, ऐसे में उनकी रुचि एक यादगार विरासत छोड़ने और रिकॉर्ड लाभांश देकर नई सरकार को 'खुश' रखने की हो सकती है."

दास का कार्यकाल इस साल दिसंबर में समाप्त हो रहा है. सरकार ने दास को 11 दिसंबर, 2018 को शुरुआत में तीन साल की अवधि के लिए आरबीआई का 25वां गवर्नर नियुक्त किया था. उन्हें 2021 में तीन साल के लिए सेवा विस्तार दिया गया. 

किस काम में इस्तेमाल होगा डिविडेंड

रिकॉर्ड लाभांश के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर गर्ग ने कहा, "अगर बजट अनुमान के आधार पर देखा जाए तो RBI का डिविडेंड करीब 1.25 लाख करोड़ रुपये ज्यादा है. यह सरकार के 45 लाख करोड़ रुपये के बजट का लगभग दो प्रतिशत है. अत: यह कोई बहुत बड़ी राशि नहीं है. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार इसका उपयोग किस सीमा तक उधारी कम करने या व्यय बढ़ाने के लिए करती है. यह जुलाई में नियमित बजट पेश होने के बाद ही पता चलेगा." 

उन्होंने कहा, "देश में राजकोषीय घाटा पिछले पांच साल में छह प्रतिशत से अधिक रहा है. वित्त वर्ष 2024-25 में इसके 5.1 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया है. यदि सरकार इसका उपयोग राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए करती है, तो यह घटकर लगभग 4.8 प्रतिशत हो जाएगा, अन्य सभी बातें समान रहेंगी." 

सरकार को देना चाहिए डिविडेंड? 

एक अन्य सवाल के जवाब में गर्ग ने कहा, "आरबीआई के पास अधिशेष राशि में इन दिनों मुख्य रूप से दो बड़े हिस्सों का योगदान होता है. पहला, रुपये मूल्य में प्रतिभूतियों और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों पर ब्याज से होने वाली परिचालन आय और दूसरा, विदेशी परिसंपत्तियों पर संचित लाभ का नकद लाभ में रूपांतरण. मैं व्यक्तिगत रूप से मूल्यांकन के स्तर पर लाभ के आधार पर लाभांश बढ़ाने के पक्ष में नहीं हूं. हालांकि, परिचालन आय से जुड़े अधिशेष को सरकार को हस्तांतरित किया जाना चाहिए." 

सरकार को डिविडेंड देने से बढ़ेगी महंगाई?

उन्होंने यह भी कहा कि मुझे नहीं लगता कि उच्च लाभांश का मुद्रास्फीति, वास्तविक ब्याज दर या आर्थिक वृद्धि पर कोई सीधा प्रभाव पड़ता है. उल्लेखनीय है कि अर्थशास्त्री और भारतीय सांख्यिकी संस्थान के पूर्व प्रोफेसर अभिरूप सरकार ने आगाह करते हुए कहा है कि बाजार में नकदी डालने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और वास्तविक ब्याज दरों में गिरावट आ सकती है, जिससे ब्याज आय पर निर्भर सेवानिवृत्त लोगों और व्यक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. 

उन्होंने यह चिंता भी जतायी कि लाभांश भविष्य में बैंकों को बचाने की आरबीआई की क्षमता को सीमित कर सकता है क्योंकि केंद्रीय बैंक के पास तुरंत कदम उठाने के लिए पर्याप्त धन नहीं होगा. इस बारे में गर्ग ने कहा कि आरबीआई ने जो लाभांश दिया है या वह उसे अपने पास रखता, तो उससे उसकी जिम्मेदारी निभाने की क्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. बैंकों के संकट से निपटने के लिए केंद्रीय बैंक अन्य उपायों का उपयोग करता है.