Public Sector Banks: सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों (Public Sector Banks) के मर्जर के लिए तय 1 अप्रैल की समयसीमा तेजी से नजदीक आ रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि ये समयसीमा (डेडलाइन) आगे बढ़ सकती है क्योंकि अभी कई नियामक मंजूरियां मिलनी बाकी हैं. एक बैंक अधिकारी ने बताया कि प्रस्तावित मेगामर्जर योजना (Proposed Megamarger Plan) को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बावजूद शेयर आदान-प्रदान अनुपात तय करना, शेयरधारकों की सहमति और दूसरी नियामक मंजूरियां मिलने में कम से कम 30-45 दिन का समय लग सकता है.

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अधिकारी ने बताया कि ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने इन बैंकों से अगले तीन से पांच वर्ष के लिए उनके वित्तीय पूर्वानुमानों की जानकारी मांगी है. इसमें एनपीए (NPA), पूंजी आवश्यकता, लोन वृद्धि और मर्जर से लागत में कमी के बारे में जानकारी मांगी गई है. पीटीआई की खबर के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ऐसे में अगले वित्त वर्ष की शुरुआत से विलय को अमलीजामा पहनाए जाने की संभावना इस समय थोड़ी अवास्तवित लग रही है.

नियामक मंजूरियों के अलावा मर्जर स्कीम को 30 दिनों तक संसद में भी रखना होगा, ताकि सांसद इसका अध्ययन कर सके. बजट सत्र का दूसरा भाग 2 मार्च को शुरू होगा. पिछले साल अगस्त में सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के 10 बैंकों का मर्जर कर चार बड़े बैंक बनाने का फैसला किया था. योजना के मुताबिक यूनाइडेट बैंक ऑफ इंडिया (United Bank of India) और ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (Oriental Bank of Commerce) का विलय पंजाब नेशनल बैंक (Punjab National Bank) में किया जाएगा. इस विलय के बाद यह सार्वजनिक क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा बैंक होगा.

सिंडीकेट बैंक (Syndicate bank) का केनरा बैंक (Canara Bank) के साथ मर्जर होना है, जबकि इलाहाबाद बैंक (Allahabad Bank) का मर्जर इंडियन बैंक (Indian Bank) में होगा. इसी तरह आंध्रा बैंक और को-ऑपरेशन बैंक को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में मिलाया जाएगा. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मर्जर की घोषणा के 10 महीने बाद भी विजया बैंक और देना बैंक के बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ विलय के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एकीकरण की प्रक्रिया अभी भी जारी है. 

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साथ ही मानव संसाधन संबंधी मुद्दे कारोबार को नुकसान पहुंचा रहे हैं और कस्टमर को असुविधा हो रही है. बैंक यूनियन भी प्रस्तावित विलय का विरोध कर रही हैं. उनका कहना है कि बैंकिंग क्षेत्र की समस्याओं और अर्थव्यवस्था में सुस्ती का समाधान बैंकों का विलय नहीं है.