नॉन-बैंकिंग नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों की दिक्कत कम होने का नाम नहीं ले रहीं. सिर्फ गोल्ड लोन सेग्मेंट को छोड़ दें तो जितने भी सेग्मेंट हैं, वहां पर दबाव आया है और एनबीएफसी के जरिए दिए जाने वाले कुल लोन में पिछले साल की तुलना में चौथी तिमाही के दौरान 31 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. गौरतलब है कि पिछले साल 17 प्रतिशत की गिरावट थी. ताजा गिरावट की वजह कई हैं, जिसमें लिक्विडिटी की दिक्कत सबसे अहम है. बैंक भी कहीं न कहीं इन्हें मदद देने में हिचक रहे हैं. अगर वे लैंडिंग कर भी रहे हैं, तो कुछ चुनिंदा कंपनियों को ही कर रहे हैं.

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इसके अलावा एनबीएफसी पर नियम सख्त करने की बात की जा रही है. हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को कर्ज देने वाला नेशनल हाउसिंग बैंक कुछ कड़े नियम ला सकता है. माना जा रहा है कि एनबीएफसी को मार्च 2020 तक सीएआर 13 प्रतिशत और 2022 तक 15 प्रतिशत करना होगा. ये कंपनियां फंड का 12 गुना ही कर्ज ले सकती हैं. पहले ये सीमा 16 गुना थी. डिपॉजिट लेने वाली कंपनियों के लिए भी नियम सख्त कर दिए गए हैं. अब ये कंपनियों फंड का 3 गुना ही डिपॉजिट ले सकती हैं. इन फैसलों ने एनबीएफसी पर कर्ज की लागत बढ़ने का अनुमान है.

एनबीएफसी को अपना टियर वन कैपिटल 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करना होगा. ऐसे में कई कंपनियों को मैनेजमेंट ने कर्ज लागत बढ़ाने के संकेत दिए हैं. बैंक की तरफ से उन्हें जो कर्ज दिए जा रहे हैं उसकी ब्याज दर यानी लागत बढ़ गई है. आरबीआई ने ब्याज दरों में 75 आधार अंकों की कटौती की है, लेकिन बैंक इसे आगे एनबीएफसी को ट्रांसफर नहीं कर रहे. इसके चलते उनकी उधारी लागत बढ़ गई है.