Bank Rules: तीन महीने तक लगातार बाउंस हो गई लोन की किस्त, तो बड़ी मुश्किल में फंस सकते हैं आप
कई बार कठिन हालातोंं के चलते ईएमआई बाउंस हो जाती है. एक या दो महीने की स्थिति को तो किसी तरह संभाला जा सकता है, लेकिन अगर लगातार तीन ईएमआई बाउंस हो गईं तो बैंक आपको डिफॉल्टर भी घोषित कर सकता है.
मकान हर किसी की जरूरत है, लेकिन इसे खरीद पाना हर किसी के लिए आसान बात नहीं है. खासतौर पर नौकरीपेशा के लिए तो ये और भी चैलेंजिंग है क्योंकि एक सैलरी से घर की जरूरतों के साथ प्रॉपर्टी के लिए पैसा जोड़ पाना आसान नहीं होता. इन स्थितियों का ध्यान रखते हुए ही बैंक आदि तमाम फाइनेंशियल संस्थाओं की तरफ से लोन की सुविधा दी जाती है. आप सिर्फ मकान के लिए ही नहीं, बल्कि कार से लेकर अन्य तमाम जरूरतों को पूरा करने के लिए भी बैंक से लोन ले सकते हैं.
लोन की रकम ब्याज समेत ईएमआई के रूप हर महीने देनी होती है. लेकिन कई बार कठिन हालातोंं के चलते ईएमआई बाउंस हो जाती है. एक या दो महीने की स्थिति को तो किसी तरह संभाला जा सकता है, लेकिन अगर लगातार तीन ईएमआई बाउंस हो गईं तो बैंक आपको डिफॉल्टर भी घोषित कर सकता है और आपकी प्रॉपर्टी को एनपीए घोषित किया जा सकता है. यहां जानिए किस तरह लगातार लोन की किस्त बाउंस होने से आपकी समस्या बढ़ सकती है.
क्या है नियम
नियमों के मुताबिक अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो उस लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है. अन्य वित्तीय संस्थाओं के मामले में यह सीमा 120 दिन की होती है. एनपीए बढ़ना किसी बैंक की सेहत के लिए भी अच्छा नहीं माना जाता और ये लोन लेने वाले के लिए भी कई तरह की मुश्किलें खड़ी करता है.
सिबिल स्कोर होता खराब
लोन की किस्त बाउंस होने का सबसे बुरा असर सिबिल स्कोर पर पड़ता है. इससे सिबिल स्कोर खराब हो जाता है. सिबिल स्कोर का खराब होने से भविष्य में आपको लोन लेने में समस्या हो सकती है क्योंकि ऐसे लोगों को बैंक विश्वसनीय नहीं मानता है. ऐसे में अगर किसी तरह लोन मिल भी जाए, तो उस लोन के लिए बहुत ज्यादा ब्याज दरें चुकानी पड़ती हैं.
एनपीए की होती हैं तीन कैटेगरी
बैंक अगर किसी प्रॉपर्टी को एनपीए घोषित कर भी दे तो इसका मतलब ये नहीं कि उसे तुरंत नीलाम कर दिया जाएगा. बैंक ने एनपीए में भी तीन कैटेगरी बनाई हुई हैं. सबस्टैंडर्ड असेट्स, डाउटफुल असेट्स और लॉस असेट्स. कोई लोन खाता एक साल तक सबस्टैंडर्ड असेट्स खाते की श्रेणी में रहता है, इसके बाद डाउटफुल असेट्स बनता है और जब लोन वसूली की कोई उम्मीद नहीं रहती तब उसे ‘लॉस असेट्स’ मान लिया जाता है. लॉस असेट बनने के बाद लोन के बदले गिरवी रखी प्रॉपर्टी को नीलाम करने की स्थिति बनती है.
नीलामी से होती है भरपाई
जब लोन चुकाने के सारे मौके देने के बाद भी व्यक्ति कर्ज नहीं चुका पाता, तब बैंक गिरवी रखी प्रॉपर्टी को कब्जे में ले लेता है. लेकिन इसके बाद उस प्रॉपर्टी की नीलामी की जाती है. यानी लोन चुकाने के लिए बैंक कई मौके देता है, फिर भी ग्राहक लोन न चुकाए तब आखिरी विकल्प के तौर पर गिरवी रखी संपत्ति को नीलाम करके लोन की रकम की भरपाई की जाती है.
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