रिजर्व बैंक के पुनर्गठन पैकेज की घोषणा से इसकी पात्रता रखने वाले सात लाख सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के एक लाख करोड़ रुपये के कर्ज को पुनर्गठित करने में मदद मिलेगी. एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने यह जानकारी दी.

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उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने पिछले महीने छोटी कारोबारी इकाइयों के लिए उनके ऋण का पुनर्गठन की एकबारगी सुविधा दी है. इसमें छोटे उद्योगों के कर्ज को एनपीए घोषित किये बिना ऋण की अवधि और ब्याज दर में संशोधन किया जायेगा. रिजर्व बैंक ने यह सुविधा 25 करोड़ रुपये तक के मानक श्रेणी के कर्ज पर दी है.

वित्तीय सेवा विभाग के सचिव राजीव कुमार ने यह अनुमान जताया है. उनका यह अनुमान घरेलू रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुमान से काफी अधिक है. इक्रा का अनुमान है कि रिजर्व बैंक के इस कदम से 10,000 करोड़ रुपये के ऋण का ही पुनर्गठन हो सकेगा. राजीव कुमार ने कहा कि सात लाख छोटी एवं मझोली इकाइयों को कर्ज पुनर्गठन की जरूरत है.

कुमार ने शुक्रवार को एक बैठक में कहा, "संपत्ति की श्रेणी को कम किए बिना इन सभी इकाइयों के रिण का पुनर्गठन मार्च 2020 तक किया जा सकता है. इसमें एक लाख करोड़ रुपये के ऋण का पुनर्गठन हो सकता है." उन्होंने कहा कि इस योजना से अतिरिक्त संसधानों को मुक्त करने में मदद मिलेगी, जिससे मांग बढ़ेगी और उद्योग में नए अवसर सृजित होंगे.

उल्लेखनीय है कि विश्लेषकों ने आरबीआई की इस पहल को "पीछे हटने वाला कदम" बताया है क्योंकि रिजर्व बैंक ने आधिकारिक रूप से कर्ज पुनर्गठन की गतिविधियों को आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया था. रिण पुनर्गठन को बैंकों के ऊंचे एनपीए के लिये जिम्मेदार कारकों में से एक माना गया है.

रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की नवंबर 2018 में हुई अहम बैठक में सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्योगों के मामले में रिण पुनर्गठन पर गौर करने की सिफारिश की गई थी. यह बैठक तब हुई थी जब सरकार और रिजर्व बैंक कुछ मुद्दों का लेकर आमने सामने आ गये थे.

हालांकि, बैंकरों का कहना है कि एमएसएमई इस सुविधा का लाभ उठाने के लिये आगे आने से कतरा रहे हैं. निजी क्षेत्र के एक बैंक ने कहा कि बेशक कर्ज मानक बना रहेगा लेकिन इससे कर्जलेनदार का रिकार्ड प्रभावित होता है जिससे उन्हें बाद में कभी परेशानी हो सकती है.