सिर्फ '1 रुपए' की लड़ाई में 'बर्बाद' हुई Jet Airways, जानिए डूबने की असली वजह
देश की सबसे पुरानी निजी विमानन कंपनी के हालात बद से बदतर होते चले गए.
जेट एयरवेज, एक ऐसी एयरलाइन, जिसने भारतीय यात्रियों को कम कीमत पर हवाई यात्रा का लुत्फ दिया. बेहतर सुविधा, फ्लाइट में खाना जैसी तमाम सर्विस के मशहूर जेट एयरवेज अब संकट से जूझ रही है. पिछले कई साल में जेट एयरवेज ने आर्थिक संकट की जिस दहलीज पर कदम रखा, उससे वापस न लौट सकी. देश की सबसे पुरानी निजी विमानन कंपनी के हालात बद से बदतर होते चले गए. नतीजतन कंपनी खड़ी करने वाले नरेश गोयल को चेयरमैन पद से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन, जेट एयरवेज की बर्बादी की कहानी कहां से शुरू हुई और क्यों इतना बड़ा आर्थिक संकट उसे देखना पड़ा. आइये जानते हैं..
1 रुपए की लड़ाई में डूबी एयरलाइन
जेट एयरवेज अपने बड़े कर्ज की वजह से नहीं डूबी, बल्कि अपनी प्रतिद्वंदी से 1 रुपए की लड़ाई में बर्बाद हुई. सिर्फ 1 रुपए ने एयरलाइन अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया. दरअसल, बात आज से चार साल पहले 2015 की है. जब जेट एयरवेज को सिर्फ 1 रुपए की जरूरत थी. अगर वह इस 1 रुपए का जुगाड़ कर लेती तो आज उसे जमीन पर नहीं उतरना पड़ता. एविएशन एक्सपर्ट्स के मुताबिक, देश की सबसे पुरानी निजी एयरलाइन जेट एयरवेज अपनी प्रतिद्वंदी एयरलाइन इंडिगो के मुकाबले सीटों पर प्रति किलोमीटर 1 रुपए ज्यादा खर्च करती है. यह 1 रुपए का अंतर ईंधन की लागत को छोड़कर अन्य खर्चों पर आधारित है. यही वजह रही कि अपने प्रतिद्वंदी से लड़ाई के फेर में पड़कर कर्ज में डूबती चली गई.
बर्दाश्त नहीं कर पाई 1 रुपए सस्ता टिकट
2015 के खत्म होते-होते जेट एयरवेज को इंडिगो के मुकाबले हर सीट पर प्रति किलोमीटर सिर्फ 50 पैसे ज्यादा कमाई हो रही थी. लेकिन, इंडिगो ने जेट को पछाड़ने का प्लान तैयार किया. उसकी मालिकाना हक वाली कंपनी इंटरग्लोब एविएशन ने अपने ऑपरेशन्स 2.5 गुना तेज कर दिए. टिकटों पर यात्रियों को बड़ी छूट दी. 2016 के शुरुआती नौ महीनों में इंडिगो को रेवेन्यू में प्रति किलोमीटर 90 पैसे का नुकसान भी उठाना पड़ा. यही वो वक्त था जब जेट एयरवेज को 1 रुपए की लड़ाई लड़नी थी. अगर जेट एयरवेज ने समय रहते 1 रुपए प्रति किलोमीटर की दर से टिकट सस्ता किया होता तो इंडिगो उसे मात नहीं दे पाती.
30 पैसे का उठाया नुकसान
कंपनी के हालात यहीं से बिगड़ते चले गए. कंपनी अपने कर्ज की किस्त नहीं चुका पाई है. पायलटों और अन्य कर्मचारियों की सैलरी देने में देरी होने लगी. पायलटों ने हड़ताल की धमकी देना शुरू किया तो विमान को खड़ा करना पड़ा और हवाई यात्राएं रद्द करनी पड़ी. यहां दोगुना बोझ टिकट के पैसा वापस करने से पड़ा. यह सब सिर्फ 1 रुपए की लड़ाई की वजह से हुआ. हालांकि, कंपनी ने इस नुकसान से उबरने के लिए 90 पैसे की जगह 30 पैसे प्रति किलोमीटर की दर से नुकसान उठाया. मतलब यह 50 पैसे का हो रहा मुनाफा और 30 पैसे का अतिरिक्त घाटा मिलाकर उसे रेवेन्यू में कुल 80 पैसे का नुकसान हुआ. लेकिन, जेट एयरवेज का यह प्लान भी फेल साबित रहा. कंपनी को अपनी लागत से कम पर टिकट बेचने पड़े. कर्ज का बोझ और बढ़ता चला गया.
ईंधन की कीमतों ने तोड़ दी कमर
पहले से कर्ज और नुकसान झेल रही जेट एयरवेज के लिए साल 2017 और भी बुरा रहा. सितंबर 2017 में ईंधन की कीमतें अचानक बढ़ना शुरू हुईं और साल के अंत तक बढ़ती रहीं. पूरी एविएशन इंडस्ट्री को इससे नुकसान हुआ. लेकिन, जेट एयरवेज को कर्ज के साथ-साथ खर्च चलाने के लिए भी मुश्किल सामना करना पड़ा. अब जेट एयरवेज के लिए रेजोल्यूशन प्लान तैयार किया गया है. लेकिन, हकीक यह कि उसे कर्ज से जल्द मुक्ति नहीं मिल सकेगी. दरअसल, जेट को मार्च 2021 तक 63 अरब रुपए कर्ज चुकाना है. लेकिन, हालात ऐसे नहीं हैं, जिनसे निकलकर वह अपना कर्ज खत्म कर मुनाफे में आ सके.