जेट एयरवेज को कर्ज दे रखे वित्तीय संस्थान कंपनी से ऋण वसूलने के विभिन्न रास्ते टटोल रहे हैं. वे मौजूदा बोली प्रक्रिया के विफल रहने की स्थिति में ऋणशोधन कानून से हटकर मामले के समाधान के पक्ष में हैं. सूत्रों ने यह जानकारी दी. जेट एयरवेज के ऊपर 8,500 करोड़ रुपये का कर्ज है. बैंकों के आपात कोष उपलब्ध नहीं कराने के निर्णय के बाद कंपनी ने अपना परिचालन अस्थायी रूप से बंद कर दिया है.

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भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की अगुवाई वाले सात बैंकों के समूह ने एयरलाइन को कर्ज दे रखा है. एसबीआई ने एयरलाइन में हिस्सेदारी बिक्री के लिये बोली प्रक्रिया शुरू की है. संभावित बोलीदाताओं के बारे में चीजें अगले महीने स्पष्ट होंगी. सूत्रों के अनुसार वैसे तो कर्जदाताओं को बोली प्रक्रिया के सफल रहने की उम्मीद है लेकिन स्थिति अनुकूल नहीं रहने की स्थिति में बैंक ‘प्लान बी’ पर भी काम कर रहे हैं. 

उसने कहा कि अगर बोली प्रक्रिया विफल रहती है, कर्जदाता कर्ज में डूबी जेट एयरवेज के समधान को लेकर दिवाला एवं ऋण शोधन (आईबीसी) संहिता रूपरेखा से बाहर इसके समाधान के पक्ष में हैं. वे मौजूदा गारंटी और संपत्ति के आधार पर वसूली एक विकल्प है जिसे तरजीह दे सकते हैं. संहिता के तहत प्रक्रिया शुरू करने से पहले राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की मंजूरी जरूरी है. इसमें समाधान बाजार से जुड़ा तथा समयबद्ध तरीके से होगा.

सूत्रों के अनुसार एनसीएलटी के बाहर मामले के समाधान का विकल्प बेहतर जरिया हो सकता है. इससे बैंकों को विमानों तथा अन्य संपत्ति से बेहतर मूल्य मिल सकते हैं. ऐसा माना जा रहा है कि चार इकाइयों- एतिहाद एयरवेज, टीपीजी कैपिटल, इंडिगो पार्टनर्स और राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढांचा कोष (एनआईआईएफ), ने जेट एयरवेज में हिस्सेदारी हासिल करने में रूचि दिखायी है. शुरूआती बोलीदाताओं के बारे में ब्योरा 10 मई को मिलने की संभावना है.

कर्जदाता एयरलाइन के पास उपलब्ध 16 विमानों समेत संपत्ति के जरिये कोष जुटाने के विकल्प पर भी गौर कर रहे हैं. इससे पहले, शुक्रवार को सूत्रों ने कहा था कि कर्जदाता सक्रियता से काम कर रहे हैं और मौजूदा स्थिति के लिये उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता. वे (बैंक) एयरलाइन में नकदी नुकसान के बाद पिछले करीब नौ महीने से उससे जुड़े हुए हैं और प्रबंधन से समाधान के लिये योजना तैयार करने का आग्रह करते रहे हैं. उसने कहा कि लेकिन दुर्भाग्य से प्रबंधन तथा प्रवर्तक ने निर्णय लेने में देरी की जिससे मौजूदा स्थिति उत्पन्न हुई.