इलेक्ट्रिक के मुकाबले हाइब्रिड कार ज्यादा फायदेमंद; कम करती हैं पॉल्यूशन, पढ़ें HSBC की ये खास रिपोर्ट
Hybrid Vs Electric Vehicles: HSBC Global रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि हाइब्रिड व्हीकल्स देश की डीकार्बनाइजेशन ड्राइव के लिए प्रैक्टिकल मीडियम टर्म सॉल्यूशन है. अब इंडस्ट्री धीरे-धीरे इलेक्ट्रिफिकेशन की ओर रुख कर रही है.
Hybrid Vs Electric Vehicles: देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल, चाहे वो 2 व्हीलर हो या 4 व्हीलर, पर सरकार और ऑटोमोबाइस इंडस्ट्री का खासा फोकस है. कार्बन उत्सर्जन और पॉल्यूशन की बढ़ती मात्रा को देखते हुए देश में इलेक्ट्रिक (Electric) और हाइब्रिड (Hybrid) कार का आगमन हुआ है. पेट्रोल और डीजल कार सबसे ज्यादा कार्बन एमिशन करती हैं. जिसके बाद इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड कार का चलन शुरू हुआ. हालांकि अभी भी देश में इन सेगमेंट की कार की बिक्री बहुत ज्यादा नही है लेकिन धीरे-धीरे ही सही लोग इन सेगमेंट की कार की ओर अपनी रुचि दिखा रहे हैं. अब इलेक्ट्रिक कार से ज्यादा हाइब्रिड कार पर फोकस की जरुरत है क्योंकि ये कार इलेक्ट्रिक कार के मुकाबले कम कार्बन एमिशन पैदा करती हैं.
हाइब्रिड व्हीकल मीडियम टर्म सॉल्यूशन
HSBC Global रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि हाइब्रिड व्हीकल्स देश की डीकार्बनाइजेशन ड्राइव के लिए प्रैक्टिकल मीडियम टर्म सॉल्यूशन है. अब इंडस्ट्री धीरे-धीरे इलेक्ट्रिफिकेशन की ओर रुख कर रही है. मौजूदा स्थितियों के तहत, इलेक्ट्रिक कार के मुकाबले हाइब्रिड कार से कुल कार्बन एमिशन (Well to Wheel) कम होता है और इलेक्ट्रिक व्हीकल और हाइब्रिड उत्सर्जन को एक साथ आने में 7-10 साल लग सकते हैं.
कितना कार्बन एमिशन जनरेट करती हैं EV और हाइब्रिड
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाइब्रिड न केवल स्वामित्व की लागत के नजरिए से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि भारत के डी-कार्बोनाइजेशन अभियान के लिए भी महत्वपूर्ण हैं. हाइब्रिड कार इलेक्ट्रिक व्हीकल के मुकाबले कम पॉल्यूशन करती हैं. इसके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल के जरिए कुल कार्बन एमिशन 158 g/km है. जबकि पेट्रोल के लिए ये 176g/km और डीजल के लिए 201 g/km है. इसके अलावा हाइब्रिड व्हीकल कुल कार्बन एमिशन 133 g/km करती थी.
हाडब्रिड कम पॉल्यूशन करती है
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि हाइब्रिड डीजल, पेट्रोल और आनुपातिक ईवी की तुलना में क्रमशः 34 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और 16 प्रतिशत कम प्रदूषणकारी हैं. इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के मामलों में, केवल बिजली उत्पादन उत्सर्जन को शामिल किया गया है, न कि कोयला उत्पादन उत्सर्जन को, जिसने समीकरण को हाइब्रिड के पक्ष में और बिगाड़ दिया होगा.
रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है कि ईवी और हाइब्रिड एमिशन को मिलने में 7-10 साल का समय लग सकता है. भारत में नॉन-फॉसिल फ्यूल के पावर जनरेशन की हिस्सेदारी 26 फीसदी है. इसके अलावा ब्लेंडेड इंडियन पावर जनरेशन एमिशन 716g/kWh है.
गैर-जीवाश्म पावर जनरेशन पर निर्भरता
इसके अलावा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर भारत में गैर-जीवाश्म बिजली उत्पादन 44 प्रतिशत तक बढ़ जाता है तो हाइब्रिड कारों और ईवी से कुल उत्सर्जन एक हो जाएगा. ऐसा होने में 7-10 साल का समय लग सकता है. HSBC ने अपनी रिपोर्ट में ये जानकारी दी है.
2030 तक अगर भारत गैर-जीवाश्म फ्यूल की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक हो जाती है, तो हाइब्रिड कार इलेक्ट्रिक के मुकाबले 8 फीसदी कम एमिशन पैदा करेंगी. मौजूदा समय में ये कार 16 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करती हैं. हालांकि लंबे समय के लिए इलेक्ट्रिक व्हीकल की मांग में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. HSBC report में कहा गया है कि हमारा मानना है कि भारत को अगले 5-10 साल में हाइब्रिड कार पर ज्यादा फोकस करना चाहिए.